न देश में पर्वों का आनंद है...
न किसी प्रकार का उलास ही है...
कवि गौरव चौहान की ये कविता...
आवाहन कर रही है...
दिल्ली की सरकार से...
सेना पर हमले दर हमले, कब नींद खुले सरकारों की,
ये सवा अरब का भारत है, या धरती है लाचारों की।
दुश्मन के क्रूर प्रहारों पर, केवल निंदा हो जाती है,
सैनिक को मिली शहादत भी तब शर्मिंदा हो जाती है।
उस वक्त स्वयं माथे पर हम लानत का तिलक लगाते हैं,
जब चार फिदाइन मिलकर के सत्रह जवान खा जाते हैं।
हल्दीघाटी की माटी में, वीरों की कथा लजाती है,
वो इकहत्तर की युद्ध विजय भी चेहरा कहीं छुपाती है।
करगिल की शौर्य पताका के चारों कोने जल जाते हैं,
सरहद पर साहस के सूरज, कायर होकर ढल जाते है।
उन थके हुए जज़्बातों को बेदर्द नहीं तो क्या बोलूँ?
मैं दिल्ली की सरकारों को नामर्द नही तो क्या बोलूँ?
वो सैनिक जिसकी जान गयी, आखिर क्या सोच रहा होगा,
मरने के पहले दिल्ली से आखिर क्या दर्द कहा होगा।
वो शायद यह बोला होगा, क्यों जान हमारी खोती है,
क्या ऐसे ही मर जाने को सेना में भर्ती होती है।
दिल्ली वाले एटम बम की धमकी से बस डर जाते हैं,
हम फौजी कितने बदनसीब, जो बिना लड़े मर जाते हैं।
मत मौत हमें ऐसी बांटो,मत वर्दी को बदरंग करो,
गर मौत हमें देनी हो तो, दुश्मन से खुल कर जंग करो।
मोदी जी,हमको लगता था, तुम सेनाओं के सम्बल हो,
उन पाकिस्तानी चूहों के सीने में मचती हलचल हो।
हम सोचे थे कुछ सालों में तुम अपनी धमक दिखा दोगे,
उस पाकिस्तान दरिंदे को आखिर तुम सबक सिखा दोगे।
लेकिन लगता है दिव्य दृष्टि, कुर्सी को पाकर मंद हुयी,
फौजों पर हमले रुके नही, ना पत्थरबाजी बंद हुयी।
अब सेनाओं की भी सुन लो, ना तिल तिल हमको मरने दो,
एटम के बम से डरो नही, सीमा के पार उतरने दो।
यह गैस-तेल, डाटा-वाटा, जन-धनके मुद्दे परे धरो,
अब समय जंग निर्णायक का, ले शंख युद्ध उदघोष करो।
हम फिर से सत्रह जानें दो, वो दिन ना हमें दिखाओ जी,
जो होगा देखा जाएगा दुश्मन की जड़ें हिलाओ जी।
यह कवि गौरव चौहान कहे मंज़िल से पहले रूको नही,
अमरीका चीन चटोरों की सत्ता के आगे झुको नही।
जिस दिन आतंक समूचे को, दोज़ख की सैर करा दोगे,
यूँ समझो उस दिन माताओं की सूनी गोद भरा दोगे।
जब मौत मिलेगी दुश्मन को, सच में सुभाग मिल जाएगा,
मानो शहीद की बेवा को फिर से सुहाग मिल जाएगा।
अब पेश है...
कुछ चुनी हुई रचनाएं...
वह मां है तेरी
छोटी बड़ी बातें तेरी
उसके मन में घर करतीं
वह जानती तेरी इच्छा
पूरी जब तक नहीं होती
बेफ़िक्र नहीं हो पाती
सुबह से शाम तक
वह बेचैन ही बनी रहती
गीतिका
प्रज्ञ हो जानती हो कहाँ दुःखती रग है
शोक आकुल हुआ जब, मुझे तुम हँसाती हो |
कहती थी मुँह कभी फेर लूँ तो तभी कहना
दु:खी हूँ या खफ़ा, तुम नहीं अब मनाती हो |
अधूरी सी रह गयी हूँ....!
कितने ही सालों से,
इन्हें छिपा कर रखा था,
आज ऐसे बिखर गये मेरे सामने,
कि मेरे सामने,मेरा वजूद बिखर गया हो...
जब मैं तुम्हारे साथ इस घर में आयी थी,
तो ये डायरी..
कुछ यादे ले कर आयी थी,
कभी हम भी तुम भी थें आशना ! / विजय शंकर सिंह
यह फ़ोटो इस लिए है कि टेररारिस्ट और अन्य में फ़र्क़ है । वैदिक जी एक आतंकी से मिल कर , ठाकरे एक पाकिस्तानी क्रिकेटर से मिल कर, और सुभाष चंद्रा और सुधीर चौधरी
एक दुश्मन देश के प्रधानमंत्री के साथ फ़ोटो खिंचा कर देशद्रोही नहीं कहलाये और सलमान खान सिर्फ यह कहने पर कि फवाद खान एक आर्टिस्ट है टेररिस्ट नहीं , उन्हें
कुछ लोग देशद्रोही कहने लगे ? इस पोस्ट का उद्देश्य केवल यह है कि देशभक्ति केवल एक व्यक्ति, दल, और विचारधारा के प्रति समर्पण ही नहीं है । देशभक्ति सरकार
की दासता भी नही है । देशभक्ति फ़र्ज़ी फोटोशॉप कर के अफवाह फैलाना भी नहीं है । देश भक्ति देश के नागरिक के जो कर्तव्य और दायित्व हैं उसका पालन करना है । संविधान
ने जो अधिकार हमे दिए हैं उनके लिए सजग रहना है । देश को जोड़े रखना देश भक्ति है, उसे तोड़ने का उपक्रम करना देशभक्ति नहीं है ।
नवरात्र स्पेशल: साबुदाने और नारियल के लड्डू
क्या आप भी इस नवरात्र में फलाहार में कुछ नया और स्वादिष्ट बनाने की सोच रहे है, तो यह लड्डू खास आप ही के लिए है। बनाने में आसान और खाने में स्वादिष्ट!
अभी दो दिन पहले गाँधी जयन्ती थी...
"आज़ादी के बाद देश की हर नगरपालिका और नगरनिगम ने अपने शहर की एक सड़क का नाम महात्मा गाँधी मार्ग रख दिया है ! इससे यह सुविधा हो गयी कि शहर के नेता जब अपने
भाषण में कहते हैं कि देश महात्मा गाँधी मार्ग पर चल रहा है तो वे गलत नहीं कहते ! वाकई चल रहा है ! आप चाहें तो सारे शहरों के महात्मा गाँधी मार्गों की लम्बाई
जोड़ यह भी बता सकते हैं कि हमारा देश महात्मा गाँधी के मार्ग पर कितने किलोमीटर रोज़ चलता है ! सरकार को यह करना चाहिए कि बॉम्बे-आगरा रोड और ग्रांड ट्रंक रोड
का नाम बदल कर महात्मा गाँधी रोड रख लेना चाहिए, ताकि हम गर्व से संसार को यह बता सकें कि भारत की जनता ही नहीं हमारे ट्रक और ऑटोरिक्शा तक महात्मा गाँधी मार्ग
पर चल रहे हैं ! "
आज बस इतना ही...
कल फिर मिलते हैं...
धन्यवाद।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंकुलदिप जी, बहुत सुंदर कविता। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंbahut accha sankalan hai
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