सादर अभिवादन
आज भाई कुलदीप जी का नेट हड़ताल पर है
पर पाँच लिंकों का आनन्द में कभी हड़ताल
की गुंजाईश ही नही..
आज देखिए मेरा पसंद की रचनाएँ.....
पहली बार आ रही हैं बहन सविता मिश्रा जी
भोर सी मुस्कराती हुई भाभी साज सृंगार से पूर्ण अपने कमरे से निकली|
"अहा भाभी आज तो आप नयी नवेली दुल्हन सी लग रहीं हैं| कौन कहेगा शादी को आठ साल हो गए|" ननद ने अपनी भाभी को छेड़ा|
"हां, आठ साल हो गए पर खानदान का वारिस अब तक न जन सकी|" सास मुहँ बिचकाते हुए बोली|
"क्या माँ आप भाभी को ही ऐसे क्यों कोसती रहतीं हैं!!"
एक अरसा हुआ तुमको सोचे हुए
ज़िन्दगी अनकही सी कहानी बनी
जो रखा हाथ अपनी तन्हाई पर
दिल की गहराइयाँ पानी पानी बनी !!
सफर में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो
कब और कैसे
तुमसे जुड़ गई
मैं खुद नहीं जानती
बस ! इतना जानती हूँ
मेरी ज़िन्दगी तुमसे है
मेरी बंदगी तुमसे है ...
ये आज की शीर्षक कड़ी.....
ही जमा होती हैं
जैसी जगह मिले
उसी की जैसी
हो लेती हैं
सामंजस्य हो
बात का बात के साथ
जरूरी नहीं होता है
कुछ बातें खुद ही
तरतीब से लग जाती हैं
...........
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सादर -
सुमन कुमार घई (साहित्यकुंज)
इसी के साथ
इज़ाज़त दीजिए दिग्विजय को
फिर मिलेंगे
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर मंगलवारीय हलचल । आभार दिग्विजय जी 'उलूक' के सूत्र 'च्यूइंगम बात' को आज के पाँच सूत्रों के बीच में चिपकाने के लिये ।
जवाब देंहटाएंthank yu for sharing my feelings..my kanani ..thank yu so much sir!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंनिदा फाज़ली की रचनाएँ हमेशा दिल को छू जाती हैं. 'ये आज की शीर्षक कड़ी - 'बातें भी बूँद, बूँद' पसंद आई.
जवाब देंहटाएंआज के पाँच सूत्रों के बीच में हमारी लघुकथा को स्थान देने के लिए आभार भैया | मान पाकर प्रफुल्लित कौन नहीं होता, अतः हम भी है | और चारों लिंक बहुत सुंदर | सादर नमस्ते |
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