जय मां हाटेशवरी...
पांच लिंकों का आनंद के समस्त पाठकों व चर्चाकारों को...
पावन विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें...
दशहरा पर्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बेसब्री के साथ इंतजार किये जाने वाला त्यौहार है। दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द संयोजन ’दश’ व ’हरा’ से हुयी है, जिसका अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दस सिरों को काटने व तत्पश्चात रावण की मृत्यु रूप में राक्षस राज के आंतक की समाप्ति से है। यही कारण है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। दशहरे से पूर्व हर वर्ष शारदीय नवरात्र के समय मातृरूपिणी देवी नवधान्य सहित पृथ्वी पर अवतरित होती हैं– क्रमश: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूश्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री रूप में माँ दुर्गा की लगातार नौ दिन तक पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के अंतिम दिन भगवान राम ने चंडी पूजा के रूप में माँ दुर्गा की उपासना की थी और माँ ने उन्हें युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया था। इसके अगले ही दिन दशमी को भगवान राम ने रावण का अंत कर उस पर विजय पायी, तभी से शारदीय नवरात्र के बाद दशमी को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है और आज भी प्रतीकात्मक रूप में रावण के पुतले का दहन कर अन्याय पर न्याय के विजय की उद्घोषणा की जाती है।
दशहरे के दिन वनस्पतियों का पूजन किया जाता है. रावण दहन के पश्चात शमी नामक वृक्ष की पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान कर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. इसके साथ ही अपराजिता (विष्णु-क्रांता) के पुष्प भगवान राम के चरणों में अर्पित किए जाते हैं. नीले रंग के पुष्प वाला यह पौधा भगवान विष्णु को प्रिय है. दशहरे का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं है, अपितु यह हमारी सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है. अब तो रामलीला स्क्रीन पर दिखाई जाने लगी। रामलीला का युग गया। टीवी आ जाने के बाद रामलीला देखने वालों का टोटा हो गया। परिणाम हुआ कि स्टेज के कलाकार खत्म होने लगे। किसी की रंग मंच में रूचि नहीं रही। नई प्रतिभाएं इस क्षेत्र में आनी बंद हो गईं। रामलीला और नाटक के देखने वाले जब नही रहे,तो कलाकार किसके लिए अभ्यास करें।
अखाडे भी अब परम्परा निभाने के लिए ही रह गए। नए कलाकार भी इधर नहीं आ रहे। लाठी और तलवार का युग रहा नहीं। तो इनमें लोगों को रूचि भी नही रह गई। अब कुछ रह
गया तो रस्म पूरी करना ही है।
रामायण या राम के जीवन से रावण के चरित्र को निकाल दिया जाए तो संपूर्ण रामकथा का अर्थ ही बदल जाएगा। स्वयं राम ने रावण के बुद्धि और बल की प्रशंसा की है। रावण जब मृत्यु शैया पर था तब भगवान राम जी ने लक्ष्मण को रावण के पास शिक्षा लेने के लिए भेजा था। महर्षि वाल्मीकि ने रावण को ‘महात्मा’ कहा है। सुबह के समय लंका में पूजा-अर्चना, शंख और वेद ध्वनियों से गुंजायमान वातावरण का रामायण में अलौकिक चित्रण है।
रावण अतुलित ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का ज्ञाता था। एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति, वास्तुकला का ज्ञाता एवं राष्ट्रनायक था।
हते तक चलने वाले इस पर्व पर आसपास के बने पहाड़ी मंदिरों से भगवान रघुनाथ जी की मूर्तियाँ एक जुलूस के रूप में लाकर कुल्लू के मैदान में रखी जाती हैं और श्रद्धालु नृत्य-संगीत के द्वारा अपना उल्लास प्रकट करते हैं। मैसूर (कर्नाटक) का दशहरा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित है। वाड्यार राजाओं के काल में आरंभ इस दशहरे को
अभी भी शाही अंदाज में मनाया जाता है और लगातार दस दिन तक चलने वाले इस उत्सव में राजाओं का स्वर्ण -सिंहासन प्रदर्शित किया जाता है। सुसज्जित तेरह हाथियों का शाही काफिला इस दशहरे की शान है। आंध्र प्रदेश के तिरूपति (बालाजी मंदिर) में शारदीय नवरात्र को ब्रह्मेत्सवम् के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन नौ दिनों के दौरान सात पर्वतों के राजा पृथक-पृथक बारह वाहनों की सवारी करते हैं तथा हर दिन एक नया अवतार लेते हैं। इस दृश्य के मंचन और साथ ही ष्चक्रस्नानष् (भगवान के सुदर्शन चक्र की पुष्करणी में डुबकी) के साथ आंध्र में दशहरा सम्पन्न होता है। केरल में दशहरे की धूम दुर्गा अष्टमी से पूजा वैपू के साथ आरंभ होती है। इसमें कमरे के मध्य में सरस्वती माँ की प्रतिमा सुसज्जित कर आसपास पवित्र पुस्तकें रखी जाती हैं और कमरे को अस्त्रों से सजाया जाता है। उत्सव का अंत विजयदशमी के दिन ष्पूजा इदप्पुष् के साथ होता है। महाराज स्वाथिथिरूनाल द्वारा आरंभ शास्त्रीय संगीत गायन की परंपरा यहाँ आज भी जीवित है। तमिलनाडु में मुरगन मंदिर में....
अब पेश है...
आज की चयनित कड़ियां...
कभी था जो अपना पराया हुआ है
उछलता फिरे है मेरा दिल ख़ुशी से
के उल्फ़त में ख़ुद को लुटाया हुआ है
ये दिल है के आवारा मौसम है कोई
कभी था जो अपना पराया हुआ है
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता : असुर और देवी दुर्गा
महिषासुर, झारखंड , ओड़ीसा, बंगाल, बस्तर में रहने वाले उरांव , मुंडा, संथाल, खड़िया , हो आदि के पूर्वज थे, यह बात आज से दस वर्ष पूर्व तक किसी को ज्ञात नहीं थी । यह ज्ञान अचानक से जेएनयू में लगभग दस वर्ष पूर्व उत्पन्न हुआ और उसके बाद से देवी दुर्गा को अपशब्द कहने की परंपरा शुरू हुई । जो लोग स्वयं लंबी रेखा
नहीं खिच पाते हैं वे दूसरी लंबी रेखा को छोटी करने का प्रयत्न करते हैं ।
झारखंड में गुमला, लातेहार एवं पलामू के इलाके में असुर नामक एक जनजाति रहती है जिनकी संख्या कुछ हज़ार में है । ज़्यादातर लोगों का धर्मांतरण हो चुका है एवं वे ईसाई बन चुके है। कुछ लोग अभी भी बचे है । इसी असुर जन जाति को लोगों ने महिषासुर से जोड़ दिया। जैसा कि हम जानते हैं कि महिषासुर दो शब्दों महिष एवं असुर के जोड़ से बना है । इस महिषासुर के असुर को झारखंड के इसी छोटी सी असुर जनजाति से जोड़ कर यह परिकल्पना स्थापित की गयी कि महिषासुर झारखंड में रहने वाले आदिवासियों के नायक एवं पूर्वज थे जिसे आर्यों ने छल पूर्वक हरा दिया एवं इसके लिए दुर्गा जी का सहारा लिया। तो सारी बात की शुरुआत महज इस बात से हुई कि महिषासुर के असुर एवं झारखंड के इस जन जाति असुर के ध्वनि में समानता है ।
गाल बजाते धूर्त ! देश को क्या दोगे ?
दुःशाशन दुर्योधन शकुनि
न टिक पाएं !
झूठ की हांडी बारम्बार
न चढ़ पाए,
बरसों से अक्षुण्ण रहा
था, दुनियां में ,
भारत आविर्भाव,
कलंकित कर दोगे !!
एक लघुव्यथा : सबूत चाहिए ....[व्यंग्य]
इसी बीच हनुमान जी अपनी गदा झुकाए आ गए और आते ही भगवान श्री राम के चरणों में मुँह लटकाए बैठ गए। हनुमान जी आज बहुत उदास थे। दुखी थे।
आज हनुमान ने ’जय श्री राम ’ नहीं कहा - भगवान श्री राम ने सोचा।क्या बात है ? अवश्य कोई बात होगी अत: पूछ बैठे --’ हे कपीश तिहूँ लोक उजाकर ! आज आप दुखी क्यों हैं ।को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो । आप तो स्वयं संकटमोचक हैं ।आप पर कौन सी विपत्ति आन पड़ी कि आप दुखी हैं ??आप तो ’अतुलित बलधामा’ है आज से पहले आप को कभी मैने उदास होते नहीं देखा ।क्या बात है हनुमन्त !
भगवान मुस्कराए
-अब तो मैं नाम मात्र का ’अतुलित बलधामा’ रह गया ,प्रभु ! बहुत दुखी हूं । इस से पहले मै इतना दुखी कभी न हुआ ।। कल मैं धरती लोक पर गया था दिल्ली की रामलीला देखने । वहाँ एक आदमी मिला......सबूत मांग रहा था.....अरे! वही धोबी तो नही था अयोध्या वाला ?- भगवान श्री राम ने बात बीच ही में काटते हुए कहा-" सीता ने तो अपना ’सबूत’ दे दिया था.. नही प्रभु ! वो वाला धोबी नहीं था ,मगर वह आदमी भी काम कुछ कुछ वैसा ही करता है ..- धोता रहता है सबको रह रह कर ।वो सीता मईया का नही ,मेरे "सर्जिकल स्ट्राईक"
का सबूत माँग रहा था
अंतिम क्रिया.........राकेश भ्रमर
‘‘मतलब बहुत साफ है. गाय आपकी मां है, तो उसकी अंतिम क्रिया आप ही करेंगे. हम क्यों करेंगे? आप लोगों ने जगह-जगह गौ रक्षक समितियां खोल रखी हैं. फिर मृत गाय को उठाने के लिए हमारे पास क्यों आए हैं?
वह आपकी माता है, आप ही उसे उठाइए...फेंकिए या जलाइए. हम आपकी माता को क्यों हाथ लगाएं. आप कहते हैं कि हम लोगों की छाया पड़ने मात्र से आप अपवित्र हो जाते हैं.
तब अगर हम आपकी माता को छुएंगे, तो क्या पाप के भागी नहीं बनेंगे.
आप अपने हाथों अपनी माता का अंतिम संस्कार करके उसे स्वर्ग भेजिए और हमें नर्क जाने से बचाइए.’’
पंडितजी के पास कोई उत्तर नहीं था. वह पिटा हुआ-सा मुंह लेकर घर लौट आए.
काश, ऐसी सास भगवान सबको दें...!!
अब गीताबाई बहू को आगे पढ़ाने के लिए ज्यादा घरों में झाडू-पोछा करती है। इतना ही नहीं तो बहू के लिए टिफिन भी तैयार कर के देती है। वे चाहती है कि बहू एक दिन पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो।
अपने बेटे एवं बेटी को पढ़ाने के लिए तो हर माँ-बाप प्रयत्नशील रहते है लेकिन एक बहू को पढ़ाने के लिए...! सच में, एक अनपढ़ गीताबाई की उच्च सोच और मानवतावादी कार्य को मैं व्यक्तिश: सलाम करती हूं। और ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि “काश, ऐसी सास भगवान सबको दें...!!”
धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंपर्वों को रेखांकित करती हुई प्रस्तुति
आभार
सादर
हार्दिक मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की हार्दिक बधाई
सभी लिंक अति सुन्दर
सादर
ज्ञान द्रष्टा
विजयादशमी की शुभकामनाएं । सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की हार्दिक बधाई। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
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