जय मां हाटेशवरी...
आज सब से पहले....
राजा दशरथ का विलाप, उनकी आज्ञासे सुमन्त्र का राम के लिए रथ जोतकर लाना,
करने लगे विलाप दुखी हो, चिन्तन मन में श्रीराम का
शायद किसी पूर्वजन्म में, प्राणियों की, की थी हिंसा
गौओं का उनके बछड़ों से, अथवा तो विछोह कराया
इस कारण ही संकट, पाया कैकेयी द्वारा दुःख कितना
किन्तु मृत्यु न अब भी आती, क्लेश सहन करने पर इतना
प्राण नहीं निकलते तब तक, जब तक समय नहीं आता
अब बारी है चयनित लिंकों की...
चंद विचार बिखरे बिखरे
दीन दुनिया से है दूर तो क्या
अंतस की आवाज तो सुन सकता है
उस पर ही यदि अडिग रहा
उसका ही अनुकरण किया
तब आत्म विश्वास जाग्रत होगा
वही सफलता की कुंजी होगा |
आलेख "हिन्दुस्तानियों की हिन्दी खराब क्यों है?" बाते हिन्दी व्याकरण की
वाक्य तीन काल में से किसी एक में हो सकते हैं:
वर्तमान काल जैसे मैं खेलने जा रहा हूँ।
भूतकाल जैसे 'जय हिन्द' का नारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने दिया था और
भविष्य काल जैसे अगले मंगलवार को मैं नानी के घर जाउँगा।
अनावृष्टि
सुखा पीड़ित घूँट घूँट पानी के लिए तरसते रहे
लाखों लीटर पानी, एक क्रिकेट मैंदान पी गए ||४|
‘प्रसाद’ कहे सुनो नेता, जनता को ना यूँ मारो
तुम्हारे खेल कूद, जनता पर भारी पड गए ||५||
भीम बैठका एकांत की कविता है - प्रेमशंकर शुक्ल
भीम बैठका एकांत की कविता है, जो कुछ ज्ञात में, कुछ अज्ञात में सुनी जा सकती है। ध्यान से देखिए न आप, भीम का मौन, चटटानों को कितना अथाह बना चुका है। इन चटटानों
में भीम के तन-मन की आग भरी है। स्पर्श में कविता है। भीम का नाम सुनते ही, यहाँ के पेड, पाखी, कितने वाचाल हो गए हैं... आगे की कविता का ऑडियो के माध्यम से
बदन... एक ग़ज़ल
आरज़ू-ए-वस्ल वो, खूंखार आज बाकी नहीं,
साथ हो बस हमसफ़र, तन्हा पड़ा तरसता बदन।
कायदा संसार का इंसान पे लिपटता कफ़न,
फ़र्ज़ की अदायगी, दर-ब-दर भटकता बदन।
रीवाज पाल रखी..
मैं हि मैं हूँ।
न जाने
वो इख्लास की
छवि गई कहाँ
जहाँ अजीजो की
भी थी हदें
आज बस यहीं तक...
फिर मिलेंगे.
अंत में...
समर शेष है, उस स्वराज को सत्य बनाना होगा
जिसका है ये न्यास उसे सत्वर पहुँचाना होगा
धारा के मग में अनेक जो पर्वत खडे हुए हैं
गंगा का पथ रोक इन्द्र के गज जो अडे हुए हैं
कह दो उनसे झुके अगर तो जग मे यश पाएंगे
अड़े रहे अगर तो ऐरावत पत्तों से बह जाऐंगे
समर शेष है, जनगंगा को खुल कर लहराने दो
शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो
पथरीली ऊँची जमीन है? तो उसको तोडेंगे
समतल पीटे बिना समर कि भूमि नहीं छोड़ेंगे--दिनकर
धन्यवाद।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स संयोजन
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का संकलन
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंपानी के लिए संघर्ष करते व्यक्तियों की इस हालत का जिम्मेदार मानव की लापरवाही के सिवा क्या हो सकता है, अब भी समय है, हमने पानी की एक-एक बूंद को बचाना होगा. सुंदर सूत्रों से परिचय करने के लिए आभार !
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
मेरी रचना को शामिल करने के लिए घन्यवाद.
बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु घन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी ।
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