सीधे चले रचनाओं की ओर....
झरोखा में...निवेदिता श्रीवास्तव
" पूर्ण विराम " ... ये ऐसा चिन्ह है जो वाक्य की पूर्णता को दर्शाता है । लगता है शायद उस स्थान पर आकर सब कुछ समाप्त हो गया है । यदयपि उन्ही बातों को शब्दों के मायाजाल से सजा कर कुछ अलग - अलग रूप देकर अपने कथ्य को थोड़ा विस्तार देने का प्रयास तब भी होता रहता है ।
आज की शीर्षक कड़ी...
आगत का स्वागत में...सरोज
बैसाख के अंगने में
गेहूं की बालियाँ
पककर सुनहली हो चलीं हैं ....
वाक़ई ! बाज़ार में
ये बालियाँ सोने की हो जायेंगी
ललचाता सा मेरा किसान दिल
हिदायती लह्ज़े में मुझसे कहता है
"रोज़! सहेज लेना सोने की बालियाँ
बेटी के ब्याह को काम आएँगी !
आज्ञा दें..फिर मिलेंगे
यशोदा
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात....
जवाब देंहटाएंबहुत से भी वहुत सुंदर.
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंशीर्षक कड़ी के साथ मेरी रचना शामिल करने का ह्रदय से आभार यशोदा। जी
जवाब देंहटाएंसादर
सरोज
शीर्षक कड़ी के साथ मेरी रचना शामिल करने का ह्रदय से आभार यशोदा। जी
जवाब देंहटाएंसादर
सरोज
बढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं