सजय भाई
हद कर दी आपने...
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चलिए चलें तड़ाक फड़ाक प्रस्तुति की ओर..
अभिव्यक्ति मेरी में.. मनीष
किस गम के गीत गाऐं ,किसको वयाँ करें।
शिकवों का जाम आखिर ,कब तक पिया करें।।
बस यू ही में.. पूनम
एक नाम..
एक आवाज़..
एक एहसास..
एक पहचान..
अंदाज़े गॉफिल में ..चन्द्र भूषण जी
हैं ख़रीदार भी बेशुमार आदमी
बेचता है धड़ल्ले से प्यार आदमी
अनुभूतियों का आकाश में..महेश कुशवंश
मैं भूंखा हू
अए रोटी तुम कहाँ हो ?
कब से नहीं देखा तुम्हें साबूत
बस टुकड़ों मे ही दिखाई देती हो
शीर्षक कड़ी...
मेरी धरोहर में..डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफ़री
किसने ऐसा किया इशारा था
ख़त मेरा था पता तुम्हारा था
इज़ाज़त दें
यशोदा
सादर
शुभप्रभात दीदी,
जवाब देंहटाएंहड़वड़ी में बनी हलचल....
लाजवाब है....
रचनाओं का फिर से वेहतरीन संगम प्रस्तुत किया है आपने। बहुत अच्छा लगा। मेरी रचना को मंच प्रदान करने के लिए यशोदा जी का विशेष आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ।
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