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शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

273...सबको समझा इसके उसके घर की फड्डा फड्डी

सादर अभिवादन...
कल ही आए
सब-कुछ
ठीक-ठाक करके

जुट गए खेल में..
और खेल भी कौन सा...
कबड्डी...
दूसरों के घर में घुसकर
मार-काट करके
वापस आप अपने घर आए
तो.... वही है कबड्डी....

बहते हुये ख़ुद को सम्भालना बहुत मुश्किल है.
मगर सम्भाल ले जो ख़ुद को बहुत बड़ा काम है..

आज रामनवमी है...
ये राम भी न...
बड़ा खिलाड़ी है कबड्डी का
रावण के घर में घुसकर..
तहस-नहस करके
वापस अयोध्या आ ही गए

चलिए चलते हैं...बातें तो होती रहेंगी.....

नीत-नीत में....नीतू सिंघल
हरिहरि हरिअ पौढ़इयो, जो मोरे ललना को पालन में.,
अरु हरुबरि हलरइयो, जी मोरे ललना को पालन में.,

बिढ़वन मंजुल मंजि मंजीरी,
कुञ्ज निकुंजनु जइयो, जइयो जी मधुकरी केरे बन में.....


रूप-अरूप में....रश्मि शर्मा
सूखी पत्ति‍यों सी
बि‍खर रही थी
उसने बुहारकर समेटा
सारा वजूद
जैसे सूखती जिंदगी में


मेरा हमसफर में....पी.के. शर्मा तनहा
ज़िंदगी से जंग भी, निरन्तर जारी है !
मगर ज़िंदगी मुझसे, कभी ना हारी है !!

दर्द ने भी पीछा, छोड़ा नहीं आज तक !
आँख भी आँसुओ, की बहुत आभारी है !!


मन की लहरें में....अरुण खाडिलकर
मिची आँखों के सामने सपने, खुली आँखों के सामने भी
यही वो हकीकत है शायद जो किसी नींद से गुज़रती रहती
********
हर वक्त रुका ठहरा, लगता के चले हरदम
आंखों में न जो आये....पूरी कुदरत एकदम


ब्लॉग विक्रम में....आनन्द विक्रम त्रिपाठी
कन्धे से कन्धा
मिला चलें हैं
अबकी बारी
ठान लिए है
अपना हक
लेकर रहेंगे
नहीं किसी की
बात सुनेंगे


और आज की शीर्षक रचना का अंश

उल्लूक टाईम्स में....डॉ. सुशील जोशी
कौन देख रहा
किस ब्रांड की
किसकी चड्डी
रहने दे खुश रह
दूर कहीं अपने
घर से जाकर
जितना मन चाहे
खेल कबड कबड्डी

********
आज यहीं तक...
आज्ञा दें दिग्विजय को...











4 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुन्‍दर प्रस्‍तुति ,रचना को मान देने के लिए सादर आभार

      हटाएं
  2. सुन्दर शुक्रवारीय हलचल । आभार 'उलूक' का सूत्र 'कबड्डी' को शीर्षक रचना के रूप में जगह देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं

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