सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
दशहरा चल रहा है .... पोस्ट देवी माँ पर होनी चाहिए थी
लेकिन कुछ लिक से हट कर करने की इच्छा थी
दिल में हलचल हुई मन सजल हो उठे
तब बातों का सिलसिला शुरू हो गए
वो कुछ कहने लगी मैं कुछ कहने लगा
बातों के दरमियान प्यार पनपने लगा
क्षण-प्रतिक्षण एक दूसरे में घुलने लगे
खुशियाँ मिली जैसे फुल खिलने लगे
एक सुहानी डगर का निर्माण हुआ
जिस पर हम दोनो सफर करने लगे
बहुत मौज मस्ती के साथ दिन कट रहा था विद्यालय चल रहा था
तबतक इसी बीच हम लोगों का विद्यालय नये मकान में चला गया
अलवेस्टर के जगह से अच्छा मकान ,हाल, लाईब्रेरी कार्यालय सब मिल गया ।
अब हमलोगो के रुम से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है
जहां आने -जाने में कठिनाइयाँ तो नहीं लेकिन समय अधिक लगने लगा
खली थी कभी नहीं मूझको, तेरी सभी चतुराई।
लेकिन जब तुम अन्त किया तो बरदाश्त नहीं हो पाईं।
तिनका सा विवश डुबता उगता बहता सोचता हूँ।
अन्दर छिपे सच्चाई को मैं जान नही पाता हूं।
सारी बातें जान-बूझ-कर भी मैं बोल नहीं पाता।
निष्कर्ष पर जाकर समझ बैठा मैं हारा तुम जीता।
तेरा यहा पर ठौर ठिकाना, तुम कुछ भी कर सकता है।
भले ही इसके लिए तुम-भ्रष्ट-पथ-पर चल सकता है।
अपने स्वार्थ को सिद्ध-पूर्ण-कर नीचता पर आ सकता है।
जब समस्या से निपट नहीं पाते हैं
आक्रामकता उदासिनता का,
प्रतिरोधक होकर जब,
कोई हद को पार करता है।
तब वापस उदासीनता में ले जाता है।
इन्हें जरूरत है प्रेरणा की,
ऊर्जावान आध्यात्मिक ज्ञान की,
आजके संसार को भली-भांति जानने की,
अर्थहीन जीवन के भ्रम को हटाने की
जब सहनशक्ति असहनीय हो जाती है तब सारी खीझ -क्रोध वाणी के माध्यम से ही निकलता है।
सबसे पहले वह अपने पति और फिर बच्चों पर अपना क्रोध जाहिर करती है।
ऐसा कर के शायद उनको बहुत सुकून मिलता है।
धीरे -धीरे उनकी ये आदत में शुमार हो जाता है।
जो भी उसे खुद से कमज़ोर नज़र आता है उसी से कर्कश व्यवहार करती है।
जिन औरतों में आत्मविश्वास की कमी होती है
वे ही धीरे -धीरे हीनता का शिकार बनती रहती है।
९.३.१६
पत्ते क्या उड़े
पंछी भी उड़ गए
छाव न ठांव
-आर के भारद्वाज
घनचक्करी
होती गृह की धुरी
बांधे घड़ी स्त्री
-विभा श्रीवास्तव
रंग कलश
लिए सर पे खड़े
वन पलाश
-राजीव गोयल
फेस बुक पर डाली गई अपनी नागवार सेल्फी पर आपको ढेरों ‘लाइक’ मिल सकते हैं
और आपकी ललितकविता के लालित्य पर अंगूठा दिखाया जा सकता है |
कितना ही नियम-विरुद्ध लिख दें, कोई विह्सिल बजाने वाला नहीं है,
मानो सबने “सकातात्मक सोच” की कसम खा रखी है.
लेकिन कुछ नक्चढे, जिनके खून में ही तिनिया निकालना होता है,
“लाइक” की इस आभासी व्यवस्था से काफी नाराज़ और दुखी हैं |
अरे, हमारी नापसंदगी के लिए भी तो कोई न कोई बटन होना चाहिए |
यह क्या, पसंद है तो भी लाइक, नापसंद है तो भी लाइक |
बटन दबाना है तो बस लाइक पर ही दबा सकते हैं | और कोई विकल्प है ही नहीं |
अब तो इलेक्शन में भी ‘नाटो’ बटन स्वीकार कर लिया गया है |
फिर मिलेंगे ...... तब तक के लिए
आखरी सलाम
विभा रानी श्रीवास्तव
बटन दबा सीटी बजा किस ब्लॉग से लिया गया? लेखक का नाम भी आना चाहिए था।सीटी बजाई हे।
जवाब देंहटाएंविभारानी श्री. को हारदिक बधाई - 5लिंकस् के लिए । सुरेन्द्र वर्मा
_/\_
हटाएंलेखक का नाम और ब्लॉग का पता छिपाने के पीछे ध्येय ये है कि , पाठक उत्सुकता के अधीन हो वहाँ जाने के लिए बाध्य हों
सादर
बटन दबा सीटी बजा किस ब्लॉग से लिया गया? लेखक का नाम भी आना चाहिए था।सीटी बजाई हे।
जवाब देंहटाएंविभारानी श्री. को हारदिक बधाई - 5लिंकस् के लिए । सुरेन्द्र वर्मा
बटन दबा सीटी बजा किस ब्लॉग से लिया गया? लेखक का नाम भी आना चाहिए था।सीटी बजाई हे।
जवाब देंहटाएंविभारानी श्री. को हारदिक बधाई - 5लिंकस् के लिए । सुरेन्द्र वर्मा
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंअति सुंदर....
जवाब देंहटाएंआज कुछ परिवर्तन महसूस हो रहा होगा....
हमारे पाठकों को....
पुनः आभार।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी
जवाब देंहटाएंसादर चरणस्पर्श
आभार.....
सादर