आज है विश्व पृथ्वी दिवस। क्पृथ्वी दिवस पूरे विश्व में 22 अप्रॅल को मनाया जाता है। पृथ्वी दिवस को पहली बार सन् 1970 में मनाया गया था। इसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील
बनाना था।
महात्मा गाँधी पृथ्वी का महत्व बताते हुए कहते हैं...
पृथ्वी स्वर्ग से भरी हुई है …लेकिन यह केवल वही देख पाता है जो अपने जूते उतारता है....
अब देखिये आज के लिये मेरे द्वारा चुने हुए कुछ लिंक....
हे निर्दयी,कृतघ्न ,स्वार्थी मानव तुझसे श्रेष्ठ तो पशु-पक्षी हैं. तू गुणहीन होने के साथ बुद्धिहीन भी है, क्योंकि जिस पृथ्वी और उसके संसाधनों के कारण तेरा अस्तित्व है उनको ही विनष्ट कर तू खिलखिला रहा है ,आनंद मना रहा है स्वयम को जगत का सबसे बुद्धिमान मानने वाले जीव, तेरी मूढमति पर तरसआता है मुझको .तू जिस अंधाधुन्ध लूट खसोट की प्रवृत्ति का शिकार हो स्वयम को समृद्ध और अपने आने वाली पीढ़ियों का भविष्य स्वर्णिम बनाना चाह रहा है , उनकी राहों में ऐसे गड्ढे खोद रहा है ,जिसके लिए वो तुझको कभी क्षमा नहीं करेंगें.विकास की दौड़ में भागते हुए तू ये भी भूल रहा है कि आगामी पीढियां तेरे प्रति कृतज्ञता का अनुभव नहीं
करेंगी अपितु तुझको कोसेंगी कि तेरे द्वारा उनका जीवन अन्धकारमय बना दिया ,उनको कुबेर बनाने के प्रयास में , उनको जीवनोपयोगी वायु,जल से वंछित कर दिया.सूर्य
के प्रचंड ताप को सहने के लिए विवश कर उनको कैंसर ,तपेदिक जैसे रोगों का शिकार बना डाला. हे मानव मत भूल , तेरे कृत्यों के ही कारण गडबडाया समस्त ऋतु चक्र......
अच्छा प्रयास
नई सरकार बनने के बाद अब तक तीन ऐतिहासिक चीज़ें जो किसी भी कारण से बाहर थी वापस देश आ चुकी हैं !
अगर भारत कोहिनूर लाने में सफल रहता है तो एक और सफलता होगी |
खून अपना सफ़ेद जब होता
चोट लगती ज़ुबान से ज़ब है,
घाव गहरा किसे नज़र होता।
बात को दफ्न आज रहने दो,
ग़र कुरेदा तो दर्द फ़िर होता।
जल
तपती धूप
जल कहाँ से लाऊँ
कुछ सूझे ना |
प्यास न बुझे
शीतल जल बिन
अब क्या करे |
नन्हे नन्हे से बिंदु ...... ????
कभी कभी ये भी सोचती हूँ कि चुनाव के समय इन नन्हे से परावलम्बित दिखने वाले बिंदुओं को चुना ही क्यों जाता है .... शायद आत्ममुग्धता की स्थिति होती होगी वो
कि हम कितने सक्षम हैं कि इन बेकार से बिंदुओं को भी एक तथाकथित सफल ढाँचे में फिट कर दिया .... पर कभी उन बिंदुओं से भी पूछ कर देखना चाहिए कि हमारे निर्मित
ढाँचे में फिट बैठने के लिए उन्होंने भी तो अपने अस्तित्व पर होने वाली तराश या कहूँ नश्तर के तीखेपन को झेला ही है .... हाँ उन्होंने अपने घावों की टपकन नहीं
दिखने दी और हमारे कैसे भी ढाँचे में फिट हो गए ,इसके लिए उनके अस्तित्व को एक स्वीकार तो देना ही चाहिए .....
संघमुक्त भारत का जादुई स्वप्न
एक और पुरानी कहावत है कि अगर आप किसी का लगातार विरोध करते हैं तो कई बार आप उसकी ही तरह हो जाते हैं । बीजेपी का विरोध करते करते नीतीश कुमार भी बीजेपी के
नारों के अनुयायी बनते नजर आ रहे हैं जब वो बीजेपी के नारे कांग्रेस मुक्त भारत की तर्ज पर संघ मुक्त भारत का नारा बुलंद करते हैं । दरअसल नीतीश कुमार यह बात
बखूबी जानते हैं कि बीजेपी को असली ताकत संघ से ही मिलती है । संघ से बीजेपी को ना केवल वैचारिक शक्ति बल्कि कार्यकर्ताओं की ताकत भी हासिल होती है जो चुनाव
दर चुनाव पार्टी को मजबूत करती नजर आती है । संघ भले ही प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में ना हो लेकिन बीजेपी के गठन के बाद से वहां एक सहसरकार्यवाह होते हैं जो
पार्टी और संघ के बीच तालमेल का काम देखते हैं । इन दिनों ये काम कृष्ण गोपाल देख रहे हैं । सबसे पहले 1949 में के आर मलकानी ने संघ के सक्रिय राजनीति में आने
की वकालत की थी । तब मलकानी ने लिखा था – संघ को सक्रिय रूप से राजनीति में शामिल होना चाहिए ताकि राजनीति की षडयंत्रों को नकारा जा सके । इसके अलावा सरकार
की भारत विरोधी नीतियों का विरोध किया जा सके । बावजूद इसके संघ सक्रिय राजनीति में तो नहीं उतरा बल्कि परोक्ष रूप से राजनीति से गहरे जुड़ता चला गया । नीतीश
कुमार के बयान को संघ के इस अप्रत्यक्ष ताकत को काउंटर करने के आलोक में देखा जाना चाहिए ।
नीतीश कुमार को ये भी लगता है कि बिखरी हुई कांग्रेस और राहुल गांधी के नाम पर सभी दल बीजेपी के खिलाफ एकजुट नहीं हो सकते हैं और उनकी केंद्रीय राजनीति के सपने
को पूरा करने के लिए ये सबसे मुफीद वक्त है । संघ पर हमला बोलकर नीतीश कुमार अपनी सेक्युलर छवि भी पेश करना चाहते हैं । पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में
मंत्री और फिर करीब दस साल तक बीजेपी के साथ बिहार में सरकार चलानेवाले नीतीश कुमार संघ पर हमला कर अपनी इसी सेक्युलर छवि को और गाढा करना चाहते हैं ।
आज के लिये बस इतना ही...
कल फिर यहां से आगे....
विभा आंटी की पसंद...
धन्यवाद।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुतिकरण
जल व वन हम बचायें
वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक सूत्र...आभार
जवाब देंहटाएंमहाकुम्भ के कारण कुछ व्यस्तता बढ़ गई है इस कारण पांच लिंक्स का आनंद नहीं उठा पाई थी क्षमा चाहती हूँ |आज मेरी रचना शामिल की बहुत बहुत धन्यवाद |
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