छीन रही ज़िन्दगी
जीवन की रफ़्तार
रहो होशियार..
~सीमा स्मृति
55-/15
आज जैसे शोक का मौसम दिखाई देने लगा था.
मेरी आँखों के सामने अन्धकार सा महसूस होने लगा.
मेरे घर में लगे बिना पेंट किया हुआ दरवाजा,
घर के सामने बना मंदिर, घर का उजड़ा आँगन भले ही
वहां खूबसूरत फूल खिले हुए हो, घर में बूढ़ी दादी और
सब कुछ सामने दिखाई देने लगा था
परन्तु अधेरा हो ही चला था.
49th Day
बस हममें और निर्जीव वस्तुओं में एक फर्क ये है कि
निर्जीव वस्तुएँ चुनाव नहीं करतीं लेकिन हम चुनते हैं।
हम खुद decide करते है कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा।
इसी आधार पर हमारे गुण विकसित होते हैं
जिनके आधार पर हमारी destiny , यानि हमें उन particular properties के साथ
किस जगह होना चाहिए ,ये condition खुद-ब-खुद बन जाती है ।
April 18, 2015
( रोटी बनाने के लिए
माँ ,बहन घर में हैं और
पत्नी भी लायी गयी है
रोटियाँ बनाने की खातिर। )…
औरत के मौजूद रहते
आदमी का रोटियाँ बनाना शर्म है
और आदमी के होते
औरत का रोटियां न बनाना जुर्म है।
May 9, 2015
वो चिट्ठी नसीहत से ख़त्म होती थी
"परीक्षाएं आ रही हैं, चिंता मत करना
खूब मन लगाकर पढ़ाई करना
बादाम भेज रही हूँ, थोड़ी खा लेना"
कागज़ के हर कोने में
नसीहतें लिखी होती थीं
हाशिए पर फ़िक्र के दस्तख़त थे
10 अप्रैल 2016
ईमानदारी और साख के लिए गहरा संकट खड़ा कर दिया है।
बाहर वालों को घर आंगन साफ सुफरा करने के लिए
झाड़ु हाथ में अवतरित हैं और बाजार में खड़ा होकर
हांक लगा रही हैं कि घूसखोरी तो हुई है क्योंकि घूस दी गयी है
दिसम्बर 25 /2015
चेहरे पे ; बदन बुद्धि पे ; क्यूं नाज हम करें ;
दुनियां से गये ; जब गये ; समूल गये हम !
रहने के लिये देश ; शहर ; घर बनाया फिर ;
औक़ात में रहने की अदा ; भूल गये हम !
April 9 / 2016
दिल की सरहद पे
लड़ती हूँ जंग,खुद से
हारती रहूँ खुद से
करती दुआ रब से।
ज़िंदगी का ये मोड़, कबूल मुझे
सफ़र होगा कितना लम्बा
अब नहीं फिक्र मुझे
हर लम्हे में मिल रहा सकून मुझे।
फिर मिलेंगे ...... तब तक के लिये
आखरी सलाम
विभा रानी श्रीवास्तव
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआनंद पर आनंद आ गया....
जवाब देंहटाएंआप की प्रस्तुति में लिंक की गयी रचनाएं पढ़कर...
आभार आदरणीय आंटी जी।