शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
पाँच लिंक परिवार की ओर से रंग,खुशी,उमंग मिठास,सकारात्मता और स्नेह की
पिचकारी भर-भर के शुभमंगलकामनाएँ।
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रंगों के बिना संसार की कल्पना संभव नहीं
रंगों से इतर जीवन की अल्पना संभव नहीं,
यूँ तो असंभव इस सृष्टि में कुछ भी नहीं हो शायद,
रंगों के स्पर्श बिना चेतना की संकल्पना संभव नहीं।
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सखि रे!गंध मतायो भीनी
राग फाग का छायो...
जीवन में खूबसूरती, रुचि और विविधता से सामंजस्य स्थापित
करते रंग जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करते हैं।
प्रकृति के विविध रंगों से श्रृंगारित यह संसार
मानव मन में जीवन के प्रति अनुराग उत्पन्न करते हैं।
शोध से ज्ञात हुआ है कि
रंग व्यक्ति के मन मस्तिष्क पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ते है।
जीवन में समय के अनुरूप
एक से दूसरे पल में
परिवर्तित होते रंग प्रमाण है
जीवन की क्रियाशीलता का...।
उत्सव का इंद्रधनुषी रंग
हाइलाइट कर देता है जीवन के
कुछ लटों को
खुशियों के रंगों से ...।
तो फिर चलिए हमसब मिलकर
प्रकृति के साथ मिलकर
रंगों के त्योहार की महक तन-मन में
भरकर खुशियों का आनंद लें।
रंगों की अपनी भाषा है और उत्सव के गीतों को परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं
तो आइये आज की इंद्रधनुषी रचनाओं के संसार में..
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इस होली में हरे पेड़ की
शाख न कोई टूटे ,
मिलें गले से गले
पकड़कर हाथ न कोई छूटे ,
हर घर -आंगन महके खुशबू
गुड़हल और कनेर की |
पिचकारी मारि के, तन भिगायों,
अबीर गुलाल मोहे मोहन लगायो...
हम सखियां सोचे कान्हा रंग लगावैं,
नटखट पर हाथन छिटक कर गयो।
होरी में छलिया छल कर गयो....
धर्म व जाति
भेद नहीं करती
भोली है होली।
होलिका जली
जलकर दिखाई
कर्म का पथ।
होली का त्यौहार खुशियों का मौसम हुआ करता था, जिसकी शुरुआत होली के पौधे लगाने से होती थी। छोटी-छोटी लड़कियाँ गाय के गोबर से वलुडिया बनाती थीं, खूबसूरत मालाएँ बनाती थीं, जिन पर आभूषण, नारियल, पायल और बिछिया होती थीं। दुख की बात है कि ये परंपराएँ अब ख़त्म हो गई हैं। पहले घर पर ही टेसू और पलाश के फूलों को पीसकर रंग बनाया जाता था और महिलाएँ होली के गीत गाती थीं।
हाय अभागे दैत्यवंश के कुलदीपक तूने ऐसी हठ क्यों ठानी? पल भर में जलकर भस्म होजाएगा ..क्या मिलेगा तुझे ?..और अभागी मैं भी तो हूँ कि तुझे गोद में लेकर प्यार करने की जगह प्राण लेने चली हूँ.. पर मैं क्या करूँ ?..अपना धर्म तो निभाना होगा । राजा की आज्ञा का पालन सबसे पहले है । होना भी चाहिये । प्रह्लाद के भाग्य में यही लिखा है तो मैं क्या कर सकती हूँ ?”
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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंअस्पताल में दो दिवस की छुट्टी है
गंभीर किस्म के मरीजों को छोड़कर
सब को छोड़ दिया है
मुझे खुशी है कि मैं गंभीर किस्म के
मरीजों में शुमार नहीं हूं
आभार
वंदन
भगवान करे आप शीघ्र स्वस्थ हों
हटाएंरंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏❤️
आपके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ !
हटाएंलाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी लिंक उम्दा एवं पठनीय
आप सभी को रंगपर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ।