निवेदन।


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रविवार, 5 जनवरी 2025

4359 ..कल पितृदोष के निवारण का अनुष्ठान है।

 दिग्विजय का वंदन

वर्ष का पहला रविवार
और रविवार का दिन फुरसत भरा
तनिक से कुछ ज़्यादा लिंक
या तो बोरियत पैदा होगी
या फिर दूर हो जाएगी
****


ऊर्जाएं बन रही हैं  
बदल रही हैं
सारे ग्रह, धरा और चन्द्र
जो कभी उसके अंश थे
अब एक परिवार की तरह
उसके अनुयायी हैं !




"हैलो सुगन्धा, बात सुन…कल न ग्यारह बजे तक आ जाना और सुन लंच भी यहीं मेरे साथ करना है !”
"कल क्या है ? एनिवर्सरी तो तुम्हारी फरवरी में है न, फिर किसका बर्थडे….?”
"अरे नहीं …कल पितृदोष के निवारण का अनुष्ठान है।”
"पितृदोष…?”





स्वस्थ जीवन, अपना बना लो |
जल्दी निंद्रा, ब्रह्म में जागना,
भोर की सैर पर, कदम बढ़ा लो |
गुनगुना पानी, थोड़ी कसरत,
प्रातः स्नान का, मंत्र, अपना लो




सहूलियतों की
सर पर छत
सीढ़ियां दे रही
अपना अभिमत
बढ़ मंजिल पग पग धर ।




हिटलर की आत्मा होगी मेरे आस-पास तो क्या सोचती होगी। मुझे बिलकुल बदल जाना चाहिए! 
जाते दिसम्बर में ख़ुद में बदलाव लाने की पूरी कोशिश करने का 
वादा ख़ुद से ख़ुद करती हूँ!




रौनक सभ्यता से बिछड़ी
प्रगति संयम से
एकता पीढ़ी से बिछड़ी
पीढ़ी पराक्रम से
ना किमख़ाब ना बड़ा मलमल रहा है



अपनी लिखने की हिम्मत होती तो
कितने होते अर्जुन उठाते गांडीव
सब बहलना है
‘उलूक’ साल को जाना ही होता है एक दिन
तुम्हें भी निकलना है
उसे भी निकलना है




फूलो के रंग से, दिल की कलम से
तुझको लिखी रोज पाती ~~
कैसे बताऊँ किस-किस तरह से
पल-पल मुझे तू सताती

आज बस
वंदन

शनिवार, 4 जनवरी 2025

4358 ...श्वान चौराहे पड़ा है, चाहता वो ताप थोड़ा

 यशोदा के नमन

सर्वप्रथम आंग्ल नव-वर्ष की शुभकामनाएं
****
25 वर्ष  के युवक को वो सब फौरन चाहिए
जिसे उसके पापा ने प्राप्त करने के लिए
50 वर्ष लगा दिए

*****

हित चाहने वाला पराया भी अपना होता है,
और अहित करने वाला अपना भी पराया हो जाता है।।
रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है।।
और औषधि वन में पैदा होकर भी हमारा लाभ ही करती है 

***

रचनाएं देखें



"तुम्हारी पूजा का सामान क्योंकि मैं चाहता हूं कि 
तुमने मेरे लिए घर छोड़ा है लेकिन जो संस्कार खून में बसे हैं , 
उनकी मैं इज्जत करता हूँ । तुम अपनी पूजा जारी रखना इसी में हमारी खुशी है।
उनके घर में दुर्गा सप्तशती और कुरान एक साथ रखे थे।






श्वान चौराहे पड़ा है
चाहता वो ताप थोड़ा
जब मनुजता दुरदुराती
आग ने कब साथ छोड़ा
पूस की जो रात ठंडी
घाव टोपी का उधेरा।।






उद्यान के अलग-अलग हिस्सों के इतिहास-भूगोल, उसकी विशेषताओं को बताते, समझाते, दिखलाते, राज ने एक जगह झाड़ियों से घिरे चलते फव्वारों के पास रुक कर कहा, चलिए आपको तालियों का एक चमत्कार दिखाता हूँ। आप सब मेरे साथ ताली बजाएंगे तो फौवारे का पानी बंद हो जाएगा और फिर जब दुबारा मेरी तालियों के साथ लय मिलाएंगे तो फिर फौव्वारे चलने शुरू हो जाएंगे ! सभी विस्मित थे कि ताली की आवाज से पानी कैसे नियंत्रित हो सकता है ! सब उत्सुकता के साथ फौव्वारों के पास इकट्ठे हो गए।




सदा सच बोलो !
दीन दुखी की सेवा करो !
बड़ों का सम्मान करो !
छोटों को प्यार करो !
रोज़ सुबह ईश्वर का ध्यान करो !




खाँसी और ज़ुकाम  का,
करके काम तमाम।
अदरक वाली  चाय  ने,
ख़ूब कमाया नाम।।


आज बस
वंदन

शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

4357....आ अब लौट चलें

२०२५ कलैंडर वर्ष की प्रथम 
शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

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नवतिथि का स्वागत सहर्ष
नव आस ले आया है वर्ष
सबक लेकर विगत से फिर
पग की हर बाधा से लड़कर 
जीवन में सुख संचार कर लो
हर क्षण से खुलकर प्यार कर लो।
सभी के हृदय सकारात्मक ऊर्जा से लबालब रहे
यही कामना करती हूँ।
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आज की रचनाएँ-
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एक बेहद सकारात्मक आह्वान आइये
 हम सभी सहयोग करें,कोशिश करें,चिट्ठा जगत
के पुराने दिन वापस लौट आए।
 नया साल, नया संकल्प, एक सकारात्मक क़दम । शुभकामनाओं के साथ लाई हूं वही पुराना अनुरोध - चलो, फिर से पूरे जोश के साथ ब्लॉगिंग शुरू करते हैं । कुछ ब्लॉगर अभी भी नियमित हैं, कुछ को अपने ही ब्लॉग पर असुविधाओं का सामना करना पड़ता है, मैं नियमित नहीं, पर हूं ।




है जीवंत मन में खूबसूरत पल
बंद पलकों में है साकार सकल

है जीत भी मिली संग मिली हार
मिला जो भी उसे किया स्वीकार 




कुछ विरहगान
गुनगुनाती
पहाड़ी लड़कियाँ
गीत में...है 
समाया हुआ
दुःख पहाड़ का


जो बनाता है सड़कें
निकालता है कोयला 
चलाता है मशीनें
सबके हाथ होते हैं खुरदुरे । 
नरम नरम रेशमी कपड़ों के बुनकरों के हाथ 
कभी नरम और मुयलयम नहीं होते 
होते हैं खुरदुरे ही । 

करीब करीब सच...


झूठा साबित करने मे लगे हैं हर रिश्ते की तस्वीर को
मोहब्बत से भी ऊपर रखते हैं लोग जागीर को
पागल हुए फिरते हैं देखने को ताजमहल 'मगर'
कौन समझ पाया है यहाँ मुमताज की तकदीर को


शंकर ने सोचा चलो घाट पर लगा लूँगा अग्नि तो मैं ही दूंगा आखिर बेटा जो हूँ । सारी तैयारी होने पर शंकर सामने आया तो बड़े नाती ने रोक दिया - "मामा आपने नानी को इसी वचन के साथ माँ के साथ भेजा था कि नानी का आप मुँह नहीं देखेंगे और  दो सालों में न कोई खबर ही ली न ही आप मिलने आये। अब यह हक आप खो चुके हैं।" 
   


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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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गुरुवार, 2 जनवरी 2025

4356...चहुँदिस गुकेश का मान बढ़े...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय  प्रफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

2025 की द्वितीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

मंगलकामनाएँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

सन 24 ताहि बिसारि दे, तू 25 की सुधि लेय

चहुँदिस गुकेश का मान बढ़े

हम्पी की हर कोई चाल पढ़े

बुमरा की बॉलिंग शीर्ष चढ़े

नित उज्जवलतम इतिहास गढ़े

अब महंगाई का राज न हो

फ़िरको में बंटा समाज न हो

रिश्वत से कोई काज न हो

संस्तुति का भ्रष्ट रिवाज न हो

*****

नव वर्ष (20 हाइकु)

चहकती है

नव वर्ष की भोर
ख़ूब है शोर।

ठिठुरन है
पर मन में जोश

नूतन वर्ष।

*****

 त्रिवेणी (समय)

तुम आए ..,साथ रहे.., किसी ने तुम्हे समझा.., किसी ने नहीं,

तुम्हे अलविदा कह , तुम्हें ही बाँट , तुम्हारा स्वागत करते हैं…,

समय तुम बहुत अच्छे हो , हमारी ग़लतियाँ माफ़ करते हो।

*****

आकांक्षा

समय की कैंची

कुशलता से निःशब्द

निरंतर काट रही है

पलों की महीन लच्छियों को

जीवन के दिवस,मास,

बरस पे बरस स्मृतियों में बदल रहे हैं

*****

चंदू, मैंने सपना देखा, लाए हो तुम नया कलैंडर- नव वर्ष 2025 पर कव‍िवर नागार्जुन की कव‍िता

चंदू, मैंने सपना देखा, अमुआ से पटना आए हो

चंदू, मैंने सपना देखा, मेरे लिए शहद लाए हो

चंदू, मैंने सपना देखा, फैल गया है सुयश तुम्हारा

चंदू, मैंने सपना देखा, तुम्हें जानता भारत सारा

चंदू, मैंने सपना देखा, तुम तो बहुत बड़े डॉक्टर हो

चंदू, मैंने सपना देखा, अपनी ड्यूटी में तत्पर हो

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फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


बुधवार, 1 जनवरी 2025

4355..बदलाव की रट लगाए रहते हैं..

 


।।भोर वंदन।।
खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें
न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें।

सुकूत छाया है इंसानियत की क़द्रों पर
यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें।

क़तील शिफ़ाई
हाजिर हूँ वहीं चिर परिचित अंदाज में, पुराने अंदाज में बहुत कुछ समेटने के प्रयास में चंद मोतिया हाथ में आई है , तो फिर आनंद लिजिए बुधवारिय अंक की..ग्रेगोरियन नववर्ष 2025  की हार्दिक शुभकामना..

खिलती खूब बहार मिले !


 स्नेहिल मित्रों , बन्धुजनों को 

खिलती खूब बहार मिले,

सुन्दर, सरस, मधुर हो जीवन 


साल बदलने जा रहा है।इसके साथ बहुत कुछ बदलने वाला है।अवश्य ही उन लोगों की आत्मा को ठंडक पहुँचेगी जो हर पल बदलाव की रट लगाए रहते हैं।गर्म मौसम में जहाँ उन्हें सर्द चाँद की दरकार होती है,वहीं हाथ-पाँव सुन्न होते ही इन्हें चमकता सूरज चाहिए।ऐसी बदलाव-आतुर जनता जिस सरकार को मिल..
✨️
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला
साल के अंतिम गुजरते दिन पर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की चन्द अनमोल पंक्तियॉ...
जिस-जिस से पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद !!

जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं,
✨️

 


चित्र साभार 

भौँरे, तितलियाँ, फूल बहारों के साथ थे 
सड़कों पे चंद लोग ही नारों के साथ थे 

नदियों में पाप धोके सभी घर चले गए 
सारे कटाव दर्द किनारों के साथ थे .
✨️


तुम कभी मत कहना
कि संयुक्त परिवार टूट रहे हैं,
पुश्तैनी घर ढह रहे हैं।
जर्जर होते दरवाज़े

तुम कभी मत कहना
कि संयुक्त परिवार टूट रहे हैं,
पुश्तैनी घर ढह रहे हैं।
जर्जर होते दरवाज़े..
।।इति शम।।
धन्यवाद 
पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️
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