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गुरुवार, 20 जून 2024

4162...तुम एम० एफ़० हुसेन जैसे किसी पेंटर के रेट पर बाल डाई करते हो क्या?’

शीर्षक पंक्ति:प्रोफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक आज प्रस्तुत हैं पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

शपथ-ग्रहण से पूर्व केश-कर्तन

इक़बाल हुसेन ! तुम एम० एफ़० हुसेन जैसे किसी पेंटर के रेट पर बाल डाई करते हो क्या?’

इक़बाल हुसेन के पास तो ऑफ़र्स का पुलिंदा था. इस बार उन्होंने एक और दिलकश ऑफ़र दिया –

अंकल जी, चम्पी तेलमालिश करवा लीजिए. आपको वो गाना तो याद ही होगा –

सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए - - -

जॉनी वॉकर से अच्छी चम्पी तेल मालिश न करूं तो आप एक पैसा भी मत दीजिएगा.

*****

आप हमेशा गलतियां करते हैं

कभी बोलकर 

कभी चुप रहकर 

कभी कह कर 

कभी न कहकर 

कभी छुप कर 

*****

भावनाएँ

मरुस्थल में पौधा सींचने 

दौड़ती हुई आती हैं 

कहती हैं-

“तुम्हारे घर के बंद किवाड़ देखकर भान होता है 

अस्त होता सूरज नहीं! हम तुम्हें डंकती हैं!!”

*****

कविता

नीर क्षीर
ध्वस्त जागीर
निर्बल राह 
प्रबल प्रवाह
ठोकर में धन 
सबल है मन
जादू की पुड़िया

निर्धन की दुनिया
*****

चौंक: लघुकथा

 तुमने पंखे से नज़र हटाये बगैर दुपट्टे की कोर से चश्मा साफ कर अपनी आँखो पर रख लिया. मैंने पास रखे जग से गिलास में पानी डालकर तुम्हें दिया. तुम गटागट पी गये. जैसे मेरे पानी देने का इंतजार ही कर रहे थे. मुझे अच्छा लगा. समझ आ गया कि वो चौंक नहीं तुम्हारे नाम की हिचकी थी जो मुझे यहाँ तक ले आयी. मैंने तुम्हारे बालों में हाथ फेरते हुए कहा, रात बहुत हो गयी है सो जाओ. तुमने पंखे से नज़र हटाये बिना ही कहा, तुम आ गयी हो अब सोना ही किसे है. इतना सुनते ही मेरे अंदर का डोपामाइन दोगुना हो गया.*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  

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