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सोमवार, 10 जून 2024

4153 ..थोड़ी खामोशी भी होगी थोड़ा हंसी का शोर भी होगा

 सादर अभिवादन


फिर ना सिमटेंगे ये पल जो बिखर जायेंगे
ये जिंदगी है, जुल्फे नहीं जो फिर से संवर जाएगी...

कुछ रचनाएं




झील के उस पार चलते हैं
कुछ देर सुकून से बैठते हैं
बहुत सी बातें मुझे बतानी हैं
शिकायतें आपस में बांट लेते हैं..

थोड़ी खामोशी भी होगी
थोड़ा हंसी का शोर भी होगा
दिल में जमा ढेर उलाहनों को
हम साझा कर मिटा देते हैं..




खुद को खोया हो गया
खोवा बना तैयार
स्वाद कुछ ऐसा पाया
सभी के मन को भाया
मैदा बना खमीर
मै तला गया ,बन धार
बना जलेबी चाशनी में
डूबा हर बार
भले ही टेड़ा मेड़ा
स्वाद मेरा अलबेला




ये वक्त
पतंग सा
ऊँचे आकाश में,
चढ़ता ही जा रहा हैं।
डोर तो हाथ में है,
फिर भी
फिसलती ही जा रही है,
कोई मायने नहीं,
कि चर्खी कितनी भरी है?
जब पतंग पर काबू नहीं,




गुरुद्वारा श्री नगीना घाट. यहाँ एक बंजारे ने एक नायाब कीमती नगीना गुरु साहिब को भेंट किया. गुरु साहिब ने नगीना नदी में फेंक दिया और कहा की इस पत्थर से ज्यादा कीमत जीवन की है. बंजारे ने तुरंत नदी में छलांग लगा दी. वहां उसे और कई नगीने मिल गए. उस बंजारे को गुरु साहिब के कथन का दर्शन समझ आ गया  



आज बस
कल सखी से मिलिएगा
सादर वंदन

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