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शनिवार, 8 जून 2024

4151 ...वह तो हवाओं में झूमने की कला है !

 सादर अभिवादन


सपने देखना बुरी बात नहीं…, 
गहरी नींद के सपने .. , 
जागती आँखों के सपने । 
कई बार सपने की अनुभूति
ताजे गुड़ की मिठास सी होती है
स्मृतियों में .., 

कुछ रचनाएं





किसे   लानत-मलामत   भेजते   हो,
मियाँ!वो आदमी  चिकना घड़ा  है।

नज़र   आते   हैं    संजीदा   बड़ों-से,
कहाँ  बच्चों  में  अब  वो बचपना है।





जो काम करो लगन से करना,
और जीना एक वृक्ष समान ।
मिट्टी में अपनी जङ फैलाना ।
मिट्टी से सदा जुड़े रहना ।





वह तो हवाओं में
झूमने की कला है !

बारिश में भीगने
आँखों से बतियाने
हाथ में हाथ डाले
हरी घास पर
डोलने में हर बार
भीतर कुछ पला है !






सभी नहाते हैं
नहाने के लिये ही
हमाम बनाने की जरूरत हो जाती है
शब्दों को नँगा कर लेने जैसी बात
किसी से कभी भी कहीं भी नहीं कही जाती है




कितने रास्ते तय करे आदमी
कि तुम उसे इंसान कह सको?
कितने समन्दर पार करे एक सफ़ेद कबूतर
कि वह रेत पर सो सके ?
हाँ, कितने गोले दागे तोप
कि उनपर हमेशा के लिए पाबंदी लग जाए?
मेरे दोस्त, इनका जवाब हवा में उड़ रहा है



आज बस
कल फिर
सादर वंदन

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ! सराहनीय रचनाओं से सुसज्जित अंक, आभार यशोदा जी !

    जवाब देंहटाएं
  2. अलग-अलग अनुभूतियों की सैर हो गई ! इतने स्वाद चखाने के लिए और नमस्ते को भी शामिल करने के लिए हार्दिक आभार.

    जवाब देंहटाएं

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