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शनिवार, 15 जून 2024

4157 ..हिस्से में तो बस पार्टी के काम का बोझ आया।

 सादर अभिवादन

कल फादर्स डे है
आपके मन में कोई
कोट-फोट हो तो 
सादर आमंत्रित करती हूँ

कुछ रचनाएं



"लगता है आपकी ज़िंदगी अपनी पार्टी के लिए मुफ्त में ही शरीर तोड़ने में कटेगी।" जिले सिंह गुर्रा कर उससे बोले, "क्या फालतू बकवास कर रही है?" "फालतू बकवास नहीं कर रही बल्कि सही बोल रही हूँ। अब तो आस-पड़ोस के लोग भी ताने मारने लगे हैं।" पत्नी उदास होते हुए बोली। जिले सिंह ने मामले की गंभीरता को समझा और गुर्राना छोड़ अपनी पत्नी को पुचकारते हुए उससे पूछा, "क्या ताना मारा? हमें भी तो बता।" "लोग कहते हैं नालायक से नालायक कार्यकर्ताओं ने भी पार्टी से टिकट लेकर अपनी किस्मत बना ली पर आप के हिस्से में तो बस पार्टी के काम का बोझ आया।"




बर्फ की कम्बल ओढ़े
पर्वत श्रृंखलाओं  की
गगनचुंबी चोटियाँ ..,
सिर उठाये
मौज में खड़े त्रिशंकु वृक्ष
जिधर नज़र पसारो
मन्त्रमुग्ध करता..,


आवेग ... (अलक)



सुधांशु बेटे का कान उमेठते हुए, गाल पर थप्पड़ जड़ते हुए चिल्लाए, तीन साल के बेटे के आँख से आँसू निकले गालों पे लटक गए, बेटा गाल सहलाते हुए बहन को देखकर बोला,

“ पापा! दीदी मीठे सेव ही खाती है न, मैं तो चख लहा था।”





लोभ हीनता के कारण ही, तुममें यह आनंद भरा है
सफल करूँगी उसे अवश्य, मिलकर तुमसे सुहर्ष  हुआ है
हार, वस्त्र, आभूषण, अंगराग, बहुमूल्य अनुलेपन दिये
 शोभा नित बढ़ायेंगी तन की , तुम्हारे योग्य ये वस्तुएँ

सदा उपयोग में लाने पर भी,  निर्दोष व शुद्ध रहेंगी
दिव्य अङ्गराग को अपना, तुम लक्ष्मी सी सुशोभित होगी




नंगे हैं अपने हमाम में,
नागर हों या बनचारी,

कपड़े ढकते ऐब सभी के,
चाहे नर हों या नारी,

पोल-ढोल की खुल जाती तो,
आता साफ नज़र चेहरा।

बिन परखे क्या पता चलेगा,
किसमें कितना खोट भरा।।



रियायतें, सहूलियत जाति-धर्म या किसी वर्ग विशेष ही को क्यों ? क्यों नहीं यह जरूरतमंदों की 
पहचान कर या जिन्हें इस सबकी सचमुच जरुरत है, उन्हें दी जाती ? बहुत सारे, अनगिनत ऐसे लोग हैं, 
जिन्होंने सरकारी नौकरी नहीं की ! उनको कोई पेंशन नहीं मिलती ! वे आर्थिक तौर असुरक्षित हैं ! 
ऐसे ही अनेकों लोग जिन्हें आज आर्थिक-मानवीय सहायता की, सरकारी सुरक्षा की अत्यंत ही 
आवश्यकता है पर वे इन रेखाओं के दायरे में नहीं आते और घुट-घुट कर तरस-तरस कर 
जीने को मजबूर हैं ! उनका ख्याल कौन रखेगा ? उनकी चिंता कौन करेगा ? 
वोट तो वे भी देते हैं !



आज बस
कल फादर्स डे है
सादर वंदन

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सूत्रों को संजोये बेहतरीन प्रस्तुति । “प्राकृतिक सुषमा” को संकलन में सम्मिलित करने के लिए हृदय तल से आभार यशोदा जी ! सादर वन्दे!

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