शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ. मिस शरद सिंह की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए आज की पसंदीदा रचनाएँ-
प्यारी प्रियतमा
पहने पीत परिधान
पहुँचे पवित्र प्रकोष्ठ
पूजे परम पूज्य
प्राण प्रतिष्ठित पावन प्रतिमा
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कविता | प्रेम का पुण्य-स्मरण | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
किंतु वह प्रेम
तो निकला
रेगिस्तानी
रेत के टीले
की तरह
एक आंधी में
बदल गया
उसका ठिया
प्रेम श्रद्धा और विश्वास है
किसी को कुछ देने की आस है
हज़ार ख़ुशियों के फूल उगाने वाली बेल है
प्रेम बना देता हर आपद को खेल है
इसकी एक किरण भी उतर जाये मन में
बिखेर देना किसी महादानी की तरह
प्रेम में होना ही तो होना है
यही बीज दिन-रात मनु को बोना है!
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रुष्ट हो जलता है भानु
मेघ भी अब तिलमिलाए
पीर मन की ये सुनाएं ...!
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पढ़ाया लिखाया उसे
निपुण बनाया घर के काम काज में
छोटे बड़ों का आदर भी
करना सिखाया उसे
सिखाया जिंदगी जीने का हुनर भी
बना दिया लाडली को सर्वगुण सम्पन्न
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अप्रतिम अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है, सराहनीय रचनाओं से सजा अंक, बहुत आभार रवींद्र जी 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु !
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