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शनिवार, 29 जून 2024

4171.."बचपन बचाओ" के नारों से बेख़बर

 सादर अभिवादन

बस बस कहते कहते
छः रचनाएं हो गई
अभी शुक्रवार की सांझ भी नहीं हुई है
और शनिवार की प्रस्तुति भी बन गई
रचनाएँ कुछ मिली जुली ....



 लंच के समय सब लोग जब हाल में इकट्ठे हुए तो सब अपने-अपने तरीके से विचार व्यक्त कर रहे थे।

      "यार लोग तो मिलने से कतराते हैं और ऑफिस में भी आकर मुँह छिपाते हैं और ये तो पार्टी देने का प्लान बनाये बैठे हैं। "




इतनी मुद्दत बा'द मिले हो
किन सोचों में गुम फिरते हो

इतने ख़ाइफ़ क्यूँ रहते हो
हर आहट से डर जाते हो

तेज़ हवा ने मुझ से पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो




ऐसा ज़रूर हो कि उन्हें रख के खा सकूँ
पुख़्ता अगरचे बीस तो दस ख़ाम भेजिए
माना जाता है कि यह सबसे पहले आसाम में जंगली प्रजाति के रूप में उगा और चौथी से पांचवी सदी ईसा पूर्व ही एशिया के दक्षिण पूर्व तक पहुंच गया। भारत कभी भी आम का आयात नहीं करता और यहां पन्द्रह सौ से अधिक किस्म के आम उगाए जाते हैं। वाकई, आम आम नहीं खास है, क्योंकि यह फलों का राजा है। मंजर से लेकर पत्तों तक, कच्चीअंबिया से लेकर पके आम तक , हमारे जीवन में रचा - बसा है, समझिए कि एक पूरी संस्कृति है आम।





बेचैन होकर कहती हूँ ख़ुद से
गंदगी की परत चढ़ी
इनके कोमल जीवन के कैनवास पर
मिटाकर मैले रंगों को
भरकर ख़ुशियों के चटकीले रंग
काश! किसी दिन बना पाऊँ मैं
इनकी ख़ूबसूरत तस्वीर



दक्ष थी लाडली उनकी हर कार्य में
उतार लाती वो स्वर्ग घरा पर
बना देती घर को जन्नत
लेकिन मिली ससुराल में रुसवाई
उसकी सर्वगुण सम्पन्नता
किसी को रास नहीं आई





जाने कितनी पीर भरी है ,
मन कि वीणा के तारों में ।
जो भी गाये  मन भर आये,
आकुल - व्याकुल झंकारों में
मेरे गीत न गाओ तुम्हारा स्वर दर्दीला हो जायेगा ।



आज बस
कल फिर
सादर वंदन

2 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    बेहतरीन रचना और सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं सादर

    जवाब देंहटाएं

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