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सोमवार, 17 जून 2024

4159 ..शराबी है तो क्या हुआ मांँ की तरह मैं भी झेल लूंगी

 


सादर अभिवादन

कल पिता दिवस निपट गया
बिलकुल ठीक
पिछले वर्ष के मानिंद

आज के अंक मे एक अलक पढ़िए
रहने दो न पापा


 रचनाएँ कुछ सनातनी
डरती हूं ज्यादा सनातनी  लिखने से
तनातनी न हो जाए  ....




मैं सुनता था
कांच के चटकने जैसी
ओस के टपकने जैसी
शाखाओं के टूटने जैसी
काले बादलों के बीच में से निकलकर
बरसती बूंदों जैसी
इन क्षणों में पिता
व्यक्ति नहीं
समुंदर बन जाते थे




माँ तुम नदी सदानीरा हो
कभी न सोती हो,
गोमुख से गंगासागर तक
सपने बोती हो,
जहाँ कहीं बंजर धरती हो
माँ तुम फूल खिलाना.





आसार तलातुम के!
मुरझा ना जाएँ

ये फूल तबस्सुम के।

*******

कैसी दुश्वार घड़ी
घर के आँगन में

ऊँची दीवार खड़ी!




सच कहूं तो
तुम मेरी पहुंच से बहुत दूर हो
मैं एक आम सा‌ किरदार हूं
तुम ख़ास सी शख्सियत हो
मैं गली के अगले मोड़ पर
खत्म होती कहानी हूं




संतप्त हृदय बैठा चिड़ा था
चिड़ी भी थी मौन विकल
निज शौक के लिए उड़ चला
संतान जो था खूब सरल‌।
उसके पतन में था नहीं
मेरा जरा भी योगदान
स्वछंद तथा स्वाधीन था
सुख स्वप्न का उसका जहान।




कोई पीछे खड़ा हँस रहा
जीवन रहे बुलाता हर पल,
रंग-बिरंगी इस दुनिया की
याद दिलाती है हर हलचल !  

कितना गहरे और उतरना
अभी सफ़र बाकी है कितना,
जहां पुष्प प्रकाश के खिलते
जहाँ बसा अपनों से अपना !




कोई बात नहीं पापा! अपने कमरे से निकलते हुए मिनी ने कहा -शराबी है तो क्या हुआ मांँ की तरह मैं भी झेल लूंगी उसका गुस्सा-अत्याचार,अपमान-अवहेलना, दुत्कार-फटकार ।आपकी तरह नशे में द्यूत होकर गालियाँ देगा ,मारेगा, पिटेगा।पैसे-गहने छीन लेगा बस यही न।मेरा जीवन नर्क हो जाएगा तो तुम मुझे देखकर दुखी रहना।जैसे नाना -नानी माँ को देखकर.......


आज बस
कल फिर मैं ही
सादर वंदन

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    सुंदर प्रस्तुति,
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार रचनाओं का बेहतरीन संकलन।
    तनातनी दूर तलक नजर नहीं आ रही 😊

    लिंकों से पिरोई गई इस माला में एक लिंक मेरा भी शामिल करने के लिए तहे दिल से आभार।

    जवाब देंहटाएं

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