नशा मुक्त भारत अभियान एक प्रमुख राष्ट्र निर्माण पहल है क्योंकि यह स्वस्थ और अनुशासित युवाओं पर केंद्रित है।
प्रति वर्ष २६ जून को मनाया जाने वाला एक विशेष दिवस
जिसमें एनएमबीए नारकोटिक्स ब्यूरो, राज्य और जिला सरकार, पुलिस, गैर सरकारी संगठनों, अस्पतालों आदि जैसी नियामक एजेंसियाँ एक साथ मिलकर भारत को नशा मुक्त बनाने के लिए समन्वित तरीके से काम करती हैं।
सबसे दुखद और.दुर्भाग्य पूर्ण है नशा के मोहपाश में उलझते किशोर और युवाओं की बढ़ती संख्या।
फुटपाथ, मंदिर की सीढ़ियों,
गंदे नालों के किनारे
फटे,मैले टाट ओढ़े निढाल
सिकुड़े बेसुध सो जाते हैं
डेंडराइट के नशे में चूर।
किसी भी फोटोग्राफी प्रतियोगिता के लिए
सर्वश्रेष्ठ चेहरे बनते
अखबार और टेलीविजन पर
दिए जाने वाले
"बचपन बचाओ" के नारों से बेख़बर,
कचरे में अपनी ज़िंदगी तलाशते
मासूमों को देखकर,
बेचैन होकर कहती हूँ ख़ुद से
गंदगी की परत चढ़ी
इनके कोमल जीवन के कैनवास पर
मिटाकर मैले रंगों को
भरकर ख़ुशियों के चटकीले रंग
काश! किसी दिन बना पाऊँ मैं
इनकी ख़ूबसूरत तस्वीर।
"पार लग गए ! अब कोई चिंता नहीं!
बारिश ने सब काम कर दिया!"
माई बाप खुश हैं
"सबके लिए,
कितना कुछ लाती हैं ,
जब भी आती हैं ।"
माथे पर मिट्टी लगा,पूज रहे हैं लोग।
वीरों के लहु से सनी,सहती वीर वियोग॥
पाषाण
छैनी ले पाषाण में,गढते दिव्य स्वरूप।
देख उसे फिर पूजते,सभी रंक अरु भूप॥
ऐसी ही सोचों वाली हेलेन एडम्स केलर हमेशा इस बात को प्रमुखता देती रहीं, कि इस महान दुनिया में हर जगह घर जैसा महसूस करने का अधिकार सभी को मिलना चाहिए। उन्होंने महिलाओं और विकलांगों के यथोचित अधिकारों के लिए कई-कई बार विश्व भ्रमण किया था। विश्व भ्रमण के दौरान विकलांग व्यक्तियों के प्रति समाज के बीच एक सहानुभूतिपूर्ण या .. यूँ कहें कि .. समानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण बनाने के प्रयास के साथ ही दानस्वरूप मिले एकत्रित करोड़ों रुपयों से विकलांगो के लिए, विशेष कर नेत्रहीनों के लिए अनेक संस्थानों का निर्माण भी करवाया था।
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हमारे भारत में वर्ष के 365 दिन
जवाब देंहटाएंहर दिन कोई न कोई विशेषता रखता है
सुंदर अंक आभार
सादर वंदन
जी ! .. नमन संग आभार आपका .. हमारी बतकही को अपनी प्रस्तुति में स्थान प्रदान करने हेतु ...
जवाब देंहटाएंआपकी आज की भूमिका में भी हर बार की तरह संदेशपरक बातें और संवेदनशील रचना जो मन को छू जाने में सक्षम है, पर .. एक और भी "गन्दा नशा" है हमारे बीच, जो फुटपाथों पर नहीं, वरन् हम बुद्धिजीवियों के घरों में है और उसके निराकरण या निदान की तो .. ना तो कोई अभियान है और ना ही दिवस, बल्कि वो सब एक 'स्टेटस सिंबल' की तरह हमारे गहन मन-मस्तिष्क में चिपका हुआ है।
और .. वो नशा है .. हमारे ही द्वारा हमारी संतानों को परोसे जाने वाले 'जंक फ़ूड' और ठंडा के नाम पर ज़हरीला 'कोल्ड ड्रिंक्स' .. और तो और .. 'अजीनोमोटो' जैसे रासायनिक ज़हर में सना हुआ 'चाइनीज फ़ूड्स' .. इससे छुटकारा पाने की भी एक .. मौखिक ही सही, पर एक मुहीम की पहल होनी ही चाहिए .. पर .. पहले अपने-अपने ही घरों से .. बस यूँ ही ...
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंनशा मुक्त भारत के लिए बड़ी पहल सरकार करने जा रही है, समाज को भी इसमें भूमिका निभानी है।
सही है, जंक फ़ूड ने स्वास्थ्य का बहुत बड़ा नुक़सान किया है।
सुंदर प्रस्तुति!
बहुत सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंनाश मुक्ति दिवस पर सार्थक और सच्ची बात
जवाब देंहटाएंमर्म को छूती कविता बहुत कह गयी
बहुत अच्छी भूमिका के लिए साधुवाद
सुंदर सूत्र संयोजन
सभी रचनाकारों को बधाई
मेरी रचना को सम्मलित करने का आभार
सादर
बहुत सुंदर संकलन। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी।
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