मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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कवि की कूची
इंद्रधनुषी रंगों से
प्रकृति और प्रेम की
सकारात्मक ,सुंदर ,ऊर्जावान शब्दों की
सुगढ़ कलाकारी करती हैं
ख़ुरदुरी कल्पनाओं में
रंग भरकर
सभ्यताओं के दीवार पर
नक्काशी करती हैं...
जिन कवियों को
नहीं होती राजनीति की समझ
उनके सपनों में
रोज आती हैं जादुई परियाँ
जो जीवन की विद्रुपताओं को छूकर
सुख और आनन्द में
बदलने दिलासा देती रहती हैं...।
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आज की रचनाएँ
चीरती धूप में
चटक नारंगी
और लाल रंग के
कालीन बिछे
बीचोंबीच
बाज़ारों के,
गाङियों की छत पर,
फुटपाथ पर ।
आंधियों में उङती
पंखुरियां मानो
कहानियों की
लाल परियां ।
बड़ी मछलियों के साथ छोटी मछलियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है ।मानसून अच्छा है तो वर्षा भी अच्छी होगी वर्षा अच्छी होने से भूमि की उर्वरा शक्ति में भी अभिवृद्धि होगी ।वैसे दुनिया में उम्मीद पर सब कुछ
क़ायम है और उम्मीद यही है कि इस बार शक्ति -सन्तुलन
बना रहेगा ।
सत्य तो यह होता कि
उदास रात नहीं होती,
उदास होते हैं हम !
उदासी परिवेश में नहीं,
हमारे अंदर
पसरी होती है और
हम दिन को
नीरस बताकर
उसे अपनी हताशा में
कोस रहे होते हैं.
एक कहावत है कि नकली मित्र रेगिस्तान की मिरीचिका सा होता है। वह पास ही दिखता रहता है लेकिन आवश्यकता में आप जब तक उसका साथ पाएं, वह गायब हो जाता है। अनगिनत व्यक्ति ऐसे मित्रों से घिरे होते हैं। उनके गायब मित्र आसानी से देखे जा सकते हैं। इस पर हमको ये समझना चाहिए कि वस्तुतः गलती चुनाव की है, न कि मरीचिका की। वह तो छल या भ्रम ही है। उसकी यही प्रवृति है।
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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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सुंदर पठनीय रचनाएं
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदन
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संग्रह !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावों से सुसज्जित कविता के साथ संकलन का आरंभ और बेहतरीन सूत्रों को प्रदर्शित करती लाजवाब प्रस्तुति । बहुत बहुत आभार श्वेता जी संकलन में सम्मिलित करने हेतु । सस्नेह सादर वन्दे !
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