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रविवार, 8 नवंबर 2020

1939....औरत तुम भी कमाल हो

जय मां हाटेशवरी...... 
बच्चों के हाथ में Mobile...... 
और ये Online शिक्षा..... 
बच्चों का भविष्य संवार रही है...... 
या इन मासूमों का भविष्य कहीं इससे खतरे में तो नहीं है..... 
टिप्पणियों द्वारा आप अपने विचार अवश्य दें। 

जब श्रीकृष्‍ण ने उत्तरा के गर्भ में सूक्ष्म रूप में प्रवेश कर अश्वत्थामा के अमोघ अस्त्र को अपने ऊपर ले लिया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे गर्भ की रक्षा की। अंत में श्रीकृष्ण बोलते हैं, 'हे अर्जुन! धर्मात्मा, सोए हुए, असावधान, मतवाले, पागल, अज्ञानी, रथहीन, स्त्री तथा बालक को मारना धर्म के अनुसार वर्जित है। इसने (अश्‍वत्थामा ने) धर्म के विरुद्ध आचरण किया है, सोए हुए निरपराध बालकों की हत्या की है। जीवित रहेगा तो पुन: पाप करेगा अत: तत्काल इसका वध करके और इसका कटा हुआ सिर द्रौपदी के सामने रख कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।' श्रीकृष्ण के वचन सुनने के बाद भी अर्जुन को अपने गुरुपुत्र पर दया आ गई और उन्होंने अश्वत्थामा को जीवित ही शिविर में ले जाकर द्रौपदी के समक्ष खड़ा कर दिया। पशु की तरह बंधे गुरुपुत्र को देख कर द्रौपदी ने अर्जुन से कहा, ' आर्यपुत्र! ये गुरुपुत्र तथा ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण सदा पूजनीय होता है और उसकी हत्या करना पाप है। आपने इनके पिता से इन अपूर्व शस्त्रास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया है। पुत्र के रूप में आचार्य द्रोण ही आपके सम्मुख बंदी रूप में खड़े हैं। इनका वध करने से इनकी माता कृपी मेरी तरह ही कातर होकर पुत्रशोक में विलाप इनका वध करने से मेरे मृत पुत्र लौटकर तो नहीं आ सकते अत: आप इन्हें मुक्त कर दीजिए।' 
 
सारे जग से भिन्न है, अपना भारत देश। रहता बारह मास ही, पर्वों का परिवेश।। -- 
बेटा-बेटी समझ लो, कुल के दीपक आज। बदलो पुरुष प्रधान का, अब तो यहाँ रिवाज।। --
 शिशुओं की किलकारियाँ, गूँजें सबके द्वार। मिलता बड़े नसीब से, मात-पिता का प्यार।। 

आसां नहीं पिछला पहर भूल जाना,
न जाने कितनी ख़ूबसूरत वादियों से मिले,
कितने ही विशालकाय  
नदियों के मुहानों से बात की,
सागर तट से उठाए सीपों के आलोकित रूह,
बहुत कोशिशें की लेकिन मुश्किल था
पहला सफ़र भूल जाना,
आसां नहीं पुराना घर भूल जाना
 
उम्र भर साथ रहेंगे
दूरियों की परवाह नहीं है,
शुक्रिया वक्त!
हम हमराज़ न होते जो तूने हमें
साथ-साथ बचपन में न पाला होता,....! 

इसमें अपनी समिधा डालनी है। सकारात्मक सोच, नियमित योग साधना, ध्यान का अभ्यास, प्रकृति का सम्मान तथा सात्विक आहार के द्वारा हम सहज ही अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं। ये सभी उपाय हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ा देते हैं।   
 
बहलाए जब दिल ना बहले
तो ऐसे बहलाएँ
झूठ ही तो है जीत की दौलत
ये कहकर समझाएँ 
अपना मन छलनेवालों को चैन कहाँ,
हाय, आराम कहाँ 

छीजती रहीं
मिटाती रहीं 
अपना अस्तित्व
ओस की बूँद सम...
बिछी रही कदमों में 
हरसिंगार सी
बिखेरती रहीं खुशबू 
शीतलता, स्नेह ...
तुम्हारे हिस्से क्या आया ? 

 धन्यवाद।

4 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार प्रस्तुति..
    आभार आपका..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. ऑन लाइन शिक्षा देना आज की विवशता है, यह स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं है, उम्मीद है कि शीघ्र ही कोविड का पक्का इलाज मिल जाएगा और हालात सामान्य हो जाएंगे, पठनीय रचनाओं की खबर देती हलचल ।। आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. उपयोगी औप पठनीय लिंक।
    बहुत-बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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