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शुक्रवार, 12 जून 2020

1792 ...हम सब का भारत देश चमन, जहाँ कमल,मोर जैसे कई रत्न


शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
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परिस्थितियों के अनुसार महामारी के इस दौर में 
एक विस्फोट बेरोजगारी की होने में 
अब देर नहीं।
संकटकाल का महासंकट
बेरोज़गारी
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हालात के हवाले के
अनगिनत कोणों से
थाली के निवालों पर
उठते संशकित प्रश्न
 कंठ से घोंटे नहीं जाते
कुछ भूख ऐसे भी हैं

सबकुछ करने की सक्षमता में
कुछ न कर पाने की विवशता है
सिक्कों की पोटली के गिने हुए
हररोज़ कुछ ख़्वाब टूट रहे हैं
कुछ जेब ऐसे भी हैं।

इच्छाओं के सुमन सूख रहे
जरूरत के काँटों से जूझ रहे
रोटी-पानी-नमक-तेल-दवा
इन दिनों एकसाथ सारे कूद रहे
कुछ आँगन ऐसे भी हैं।

©श्वेता

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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं।

एक संक्रमित परिवार की कहानी

Covid-19 का परीक्षण कराना आसान नहीं रहा. प्राइवेट हॉस्पिटल एक टेस्ट का तीस हज़ार (30,000) रूपये तक चार्ज कर रहे हैं. नाम तो कोरोना का, पर मरीज़ के प्रवेश करते ही उन्हें अपनी सारी मशीनों के उपयोग का उम्मीदवार दिख जाता है. फिर CT Scan, Echo और जितने भी टेस्ट संभव हैं सबकी उपयोगिता बताते हुए मरीज़ को डराया जा रहा है. बात इतने पर भी नहीं रूकती. जैसे ही पॉजिटिव निकला, उसे बेड (Bed) न होने की असमर्थता जता दी जाती है. मानकर चलिए यदि आप एक संभावित मरीज़ हैं तो दो दिन केवल परीक्षण के लिए भटकेंगे, उसके बाद तीन दिन हॉस्पिटल की खोज में गुजर जायेंगे. भटकने की इस प्रक्रिया में आप कितने लोगों के संपर्क में आकर उन्हें संक्रमित कर सकते हैं, 



लपका को पहचानना आसान नहीं होता

उसके पास सुंदर लुभावनी भाषा होती है

और अवसर के अनुरूप वस्त्र

उसके मुखौटे बिल्कुल वास्तविक लगते हैं

उसे हर क्षेत्र के इतिहास भूगोल की जानकारी होती है

जिससे शिकार मंत्रमुग्ध हो जाता है



घरों की राह ढूँढते 
बच्चों के तलवे चटक कर नदी हो गये हैं 
पपड़ियाँ छिल रही हैं 
सड़क ने छीन ली है सारी नमी
बहते खून के कतरे
सूख कर काले पड़ गए हैं
जिनमें मछलियों सी तड़प रही है बच्चों की हँसी




कभी प्रतीक्षाओं के पनघट
भी आबाद रहा करते थे.
उम्मीदों के घाट उतरकर
खाली कलश भरा करते थे.
पनघट-घाट कहाँ है अब
सिर गागरिया भी फूट गई है.
कविता मुझसे रूठ गई है .




शून्य को आकार दो
कर्म के पराक्रम से
अणु से ब्रह्माण्ड तक
बिंदु से लकीर तक
इंसान से फ़कीर तक


किसी भी लेखनी से फूटी
पहली कविता बहुत विशिष्ट होती है
ऐसी ही एक कविता में अपनी
लेखनी के
स्मृतियों की सुगंध महसूस कीजिए
चलते-चलते

खैर .. उसी "बाल मण्डली" कार्यक्रम में पढ़ने के लिए अपने जीवन की ये पहली कविता (?), जो संभवतः 1975 में पाँचवीं कक्षा के समय लगभग नौ वर्ष की आयु में लिखी थी; जिसे पढ़ कर अब हँसी आती है और शुद्ध तुकबन्दी लगती है। यही है वो बचपन वाली तुकबन्दी, 
बस यूँ ही ...  

हम-क़दम का नया विषय

यहाँ देखिए

आज का अंक उम्मीद है आपको
पसंद आया होगा।
कल का अंक पढ़ना न भूले
कल आ रही हैं विभा दी।

#श्वेता सिन्हा


10 टिप्‍पणियां:

  1. "परिस्थितियों के अनुसार महामारी के इस दौर में
    एक विस्फोट बेरोजगारी की होने में
    अब देर नहीं।" ... देर नहीं बल्कि बेरोजगारी तो अपना चादर डाल चुकी है हमारे सिर पर। जितने भी लोग, चाहे जिस भी तबके के हों, दूसरे राज्य या दूसरे देश से अपने गाँव-शहर के घर-परिवार के बीच मज़बूरीवश लौटे हैं, उनमें अधिकांश तो बेरोजगार हो कर ही लौटे हैं।

    "इच्छाओं के सुमन सूख रहे
    जरूरत के काँटों से जूझ रहे
    रोटी-पानी-नमक-तेल-दवा
    इन दिनों एकसाथ सारे कूद रहे
    कुछ आँगन ऐसे भी हैं।"...
    अनेकों घर-परिवारों के आज का लाचार कटु सत्य ..

    विभिन्न पहलुओं को छूती आज की प्रस्तुति के बीच मेरी रचना/भावना/विचार को जगह देने के लिए आभार आपका ...


    जवाब देंहटाएं
  2. बढिया से बेहतर प्रस्तुति
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. मैं मानता हूँ कि मेरी एक बुरी आदत या कमजोरी है कि बहुत कम ही होता है कि मैं कोई अन्य रचना पढ़ पाता हूँ या पूरी रचना तो बहुत ही कम ..
    खैर .. पूरी रचना पढ़ने के क्रम में आज भी "लपका" वाली मोहतरमा के पोस्ट पर प्रतिक्रिया के अप्रूवल के बाद प्रतिक्रिया दिखने की बात दिखी। अगर प्रतिक्रिया लिखने के पहले ये पाबन्दी का भान हो जाए तो मैं प्रतिक्रिया लिखूँ ही ना।
    एक तो उन्होंने "लपका" लिख कर केवल पुरुष-वर्ग को लपेटा है .. उनको "/" के बाद "लपकी" भी लिखना चाहिए .. यानि "लपका/लपकी" .. शायद ...
    संजय कौशल तो जैसे अंतरिक्ष यान की सैर करा गए .. साथ ही एक समसामयिक पीड़ा (एक संक्रमित परिवार की कहानी), एक दर्शन (शून्य) और एक दर्शन व पीड़ा दोनों की (कविता रूठ गई है) एहसास कराती रचनाओं का संगम मिला ...

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत-बहुत आभार आपका, श्वेता दी!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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