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शनिवार, 20 अप्रैल 2019

1373... चल छोड़ रोना


मतदाता हो रहे झुनझुना
थपकी मिला जो कुनमुना
अनेकानेक प्रलोभन होना
नेता बन ले दाद चुनचुना

सभीको यथायोग्य
प्रणामाशीष

चल छोड़ रोना
तू जरा मुस्कुरा दे।

सपने पूरे कर छोडूंगा

आपको यह कविता कैसी लगी
उन्हें बताना ना भूलें।

नेता
जब नेता सोये,  जनता रोये
जब जनता सोये, नेता खुश
मौज करेंगें , राज करेंगें
नए नए नारे और वादे
जनता को बेहोश रखेंगे

तुम रोना मत
अपनी तनहाइयों पर,
माज़ी की परछाइयों पर,
ज़माने की नादानियों पर,

व्यथित हृदय अब रोता हा
जवान बलि देते सीमा पर
वाणी है, न उनकी  विराम पाती
पूछो, उन परिवारी जन से
जिनका खोया कुल-थाती |
पेट काट पराया, अपना भरते
हक छीन, समता की बातें करते

स्पेंग्लर का रोना
लड़ने और लड़ने के बीच के
फ़र्क के बारे में
और यह कि न लड़ना भी
उतनी ही पुरानी आदत है
जितना कि लड़ना।
और फि़र यह कि
जीवन भी तो उतना ही पुराना है
><
फिर मिलेंगे...
हमक़दम का अगला विषय है

आम के टिकोरे,अमिया।

उदाहरण स्वरूप यह रचना


आम के 
टिकोरे हैं 
कहीं छाँह पेड़ों की ,
पायल से
 बात करे 
हरी घास मेड़ों की ,
सोया है 
चाँद कोई
लेखक: जयकृष्ण राय तुषार
अंतिम तिथिः 23 अप्रैल 2019
प्रकाशन तिथिः 25 अप्रैल 2019

8 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    व्यथित हृदय अब रोता हा
    जवान बलि देते सीमा पर
    वाणी है, न उनकी विराम पाती
    पूछो, उन परिवारी जन से
    जिनका खोया कुल-थाती |
    पेट काट पराया, अपना भरते
    हक छीन, समता की बातें करते
    बेमिसाल प्रस्तुति..
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंंदर लिंकों से सजी आज की प्रस्तुति।
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर, पठनीय प्रस्तुति के लिए सादर आभार विभा दी।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार लिंकों का समावेश
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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