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सोमवार, 21 मार्च 2016

248...गैर आशिक़ हैं जो वो आशिक़ बनाए जाएंगे

सादर अभिवादन..
होलिका पर्व की अग्रिम शुभकामनाएँ


चलें चलते हैं आज की चयनित रचनाओं की ओर...

तू रोता है अपने दुःख से 
और मैं 
रोती हूँ
प्यार की चाहत मे 

जब कभी
....मैं
नहीं कह पाती
....तुमसे
अपने मन की बात


जली होलिका 
प्रहलाद न जला 
विजयी सत्य |

कभी-कहीं दि‍ख जाती हैं एक साथ हजारों गौरैया तो वाकई बहुत अच्‍छा लगता है। कुछ साल पहले मैंने ये तस्‍वीर ली थी जो मुझे बेहद पसंद है। एक ढलती शाम में गौरैयों के बसेरे से आती चहचहाहट ने मेरे पांव थाम लि‍ए थे। बहुत देर मैं इन्‍हें देखती रही।


मेरी धरोहर में.. महेश चंद्र गुप्त खलिश
जान लिया नामुमकिन है दिल को पाना अहसासों से
पास न दौलत तो मत जाना उल्फ़त के बाज़ारों में

आज तलक मुँह ना मोड़ा है ख़लिश वफ़ा से तो हमने
भूल न जाना, गिन लेना हमको अपने दिलदारों में.



आज की शीर्षक कड़ी कुछ हुलियाना अंदाज में

मह्वे-हैरत में हूँ कि वो सैटर था कितना बाकमाल
इश्क़ के बारे में पूछा जिसने पर्चे में सवाल
ऐसे ही सैटर अगर दो-चार पैदा हो गए
देखना इस मुल्क में फनकार पैदा हो गए
आम होगी आशिकी कालिज के अर्ज़-ओ-तूल में
लैला-ओ-मजनूं नज़र आएँगे अब इस्कूल में
इश्क़ के आदाब लड़कों को सिखाये जाएंगे

आज्ञा दें
फिर मिलेंगे
एक छोटा सा विज्ञापन वीडियो....
पर इसे कला की दृष्टि से देखें
बच्चो को भी आनन्द आएगा
कोशिश करेंगे बनाने की




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