आकांक्षा पर ....आशा सक्सेना
अतुलनीय गुणों की धनी
हर दिन उसका है
सब कुछ अधूरा जिसके बिना
फिर औपचारिकता क्यूं ?
हो एक दिवस उसके नाम
हुआ आवश्यक क्यूं ?
हर प्;ल रहती इर्दगिर्द
चाहे जो भी रूप धरे
माँ बहन बेटी होती
पत्नीकभी तो कभी प्रेयसी
सभी रूप होते आवश्यक
रेखा जोशी
ज्ञान दर्पण पर......रतन सिंह जी
केशरिया कर निकल पड़े थे मान बचाने माता का।
Raja Jhujhar Singh Bundela जुझारसिंह बुन्देला ओरछा के राजा थे। अपने पिता वीरसिंह बुन्देला की मृत्यु के बाद ओरछा के राजा बने| ये गहरवाल वंश के थे| जुझारसिंह शासन का भार अपने पुत्र विक्रमाजीत को सौंप कर स्वयं शाहजहाँ की सेवा में आगरा चले आये। शाही दरबार में उसका मनसब चार हजार जात और चार हजार सवार का था। जुझार सिंह बुन्देला एक शक्तिशाली शासक थे। विक्रमाजीत ने वि.सं. १६८६ (ई.सन १६२९) में विद्रोह कर दिया। जुझारसिंह भी अपने पुत्र के पास चले गए। वहाँ अपने आप को स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया। शाहजहाँ ने विद्रोह को कुचलने के लिए एक विशाल शाही सेना भेजी।
और अब दिजिए
विरम सिंह सुरावा को आज्ञा
धन्यवाद
बढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात...
जवाब देंहटाएंभाई विराम सिंह जी सर्वप्रथम आभार आप का...
आप इतनी लगन से प्रस्तुति बना रहे हैं।
बहुत बढ़िया सामयिक हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंआनंद देती लिंक्स |
जवाब देंहटाएंशानदार प्रयास समसामयिक विषयों पर
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |