धागों को उलझा रही हूँ...
कि सुलझा रही हूँ....
उलझे तो तुम्हारे ख्याल हो,
सुलझे तो तुम्हारे जवाब हो.....
मैं फिर धागों में,
हमारे एहसासों को पिरो रही हूँ.....
बिना किसी शर्त के,
बिना किसी वादों के,
मैं बुन रही हूँ,..
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छा चयन
सादर
धन्यवाद आप ने मेरी रचना गरीबी के दिन को जगह दी ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल .......आभार
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