रात तो गुज़र ही जाती है
दिन गुज़रते भी देर नहीं लगती
मैं ग़ज़ल कहती रहूँगी में....कल्पना रामानी
जलधि जल में, निर्झरों पर, पर्वतों पर, खाइयों में
पूर्णिमा की चंद्र किरणें, रच रहीं सुखदाई होली।
चार दिन की चाँदनी सब, सौंपकर उपहार हमको
‘कल्पना’ आएगी फिर से, चार दिन हरजाई होली।
कौशल में....शालिनी कौशिक
दुखाऊँ दिल किसी का मैं -न कोशिश ये कभी करना ,
बहाऊँ आंसूं उसके मैं -न कोशिश ये कभी करना.
नहीं ला सकते हो जब तुम किसी के जीवन में सुख चैन ,
करूँ महरूम फ़रहत से-न कोशिश ये कभी करना .
मेरे गीत में....सतीश सक्सेना
कुछ श्राप भी दुनियां में आशीर्वाद हो गए,
जब भी तपाया आग ने , फौलाद हो गए !
यह राह खतरनाक है, सोंचा ही नहीं था ,
हम जैसे सख्तजान भी, बरबाद हो गए !
सुधिनामा में....साधना वैद
तुम न आये
बैरी चाँद सताए
कुछ न भाये !
ये है आज की शार्षक रचना का अंश
आपकी सहेली में....ज्याति देहलीवाल
दोस्तों, हमारे यहां कई त्योहारों में उखाने बोलने की प्रथा है। अभी राजस्थानी समाज में गणगौर का त्योहार मनाया जा रहा है। इस त्योहार में भी उखाने बोले जाते है। अत: पेश है हिंदी उखाने। यहां पर जो रिक्त स्थान दिए हुए है उन जगहों पर पति या पत्नी का नाम लेना होता है और पहली लाइन हम दो बार बोल सकते है। जैसेः...
सोने का मंगलसुत्र, कड़ी-कड़ी जोड़ा,
--- के लिए, मैने माता-पिता का घर छोडा।
आज्ञा दें यशोदा को
पर वो कौन है....
यशोदा जी, मेरी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआज की प्रस्तुति में सुन्दर सूत्रों का चयन किया गया है ! मेरी रचना 'आया बसंत छाया बसंत' को भी सम्मिलित करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसभी को रंग पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
बढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं