प्रणामाशीष
"लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं ,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं।"
साभार .... सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
यौनाकर्षण, स्त्रियां, बलात्कार
आज समाज हर और यौनाकर्षण से भरा हुआ है.
आलपिन से लेकर कारों तक हर चीज स्त्री के
यौनाकर्षण के आधार पर बेची जाती है.
ऐसे स्त्रियों की भी कोई कमी नहीं है
जो नाचगाने (केबरे), पिक्चर, विज्ञापन, आदि कि लिये
अपने आपको बडे आराम से अनावृत करती हैं
एवं मादक मुद्राओं में चित्रित होती हैं.
शादी का लड्डू कब खायें
आखिर आदम जो फल खाकर पछताया उसी के तो
परिणाम स्वरूप दुनिया पछता रही है आज तक।
इसलिये..शादी करनी है, ये अटल सत्य है,
इसमें कोई दोराय नही..
लेकिन कब करें ये बडा यक्ष प्रश्न है।
कुछ नया करके दिखलाओ
इस बार पहले होटलों, रेस्तराओं, चाय दुकानों, पर जाओ
बालकों को बाल श्रम से बचाओ ,
उनकी दय्निया हालत पर दृष्टी दोडाओ
फीर बाल दिवस मनाओ
उपलब्द्धियां और संभावनाएं
एक बादल झुका मेरी छत पर सुनो, हां सुनो जी सुनो/
उस बादल ने कितने रूप धरे/हां सुनो जी सुनो/
खरगोश बना, वह मोर बना/वह सिपाही बना/वह चोर बना/
उस चोर से भैया हम खूब डरे/हां, सुनो जी सुनो।“
कविता के बाद कहानी पर नजर
ग्राम्य जीवन पर लिखनेवाले कहानीकार
अब भी रेणु की भाषा के अनुकरण से आगे नहीं बढ़ पाए हैं ।
ग्राम्य जीवन चाहे कितना भी बदल गया हो
हिंदी कहानी में गांव की बात आते ही
भाषा रेणु के जमाने की हो जाती है ।
औरत का दर्द और कुछ सवाल
मैं अपनी निजी तकलीफ मानती हूं, सिर्फ अपना दर्द, वह किसी और का भी तो दर्द हो सकता है. लोहा-लोहे को काटता है इसलिए यह सब लिखना जरूरी है ताकि एक दर्द दूसरे के दर्द पर मरहम रख सके. हो सकता है, जिस कठिन यातना के दौर से मैं गुजरी हूं, कई और मेरी जैसी बहनें गुजरी हों, और शायद वे भी चुप रह कर अपने दर्द और अपमान को छुपाना चाहती हों. या अब तक इसलिए चुप रही हों कि अपने गहरे जख्मों को खुला करके क्या हासिल? खास करके जब जख्म आपके अपने ने दिये हों. वही जो आपका रखवाला था. जिसे अपना सब कुछ मान कर जिसके हाथों में आपने न केवल अपनी जिंदगी की बागडोर सौंप दी बल्कि अपने सपने भी न्योछावर कर दिये.
पर-कटी पाखी
बाल-मन निर्मल, पावन और कोमल ऋषि-मन होता है।
बालक तो निश्छल और निःस्वार्थ भाव से प्रेम करते हैं।
और प्रेम ही तो मोह का मूल कारण होता है।
बन्धन में बाँध लेता है भावुक भोले-मन को।
फिर मिलेंगे .... तब तक के लिए
आखरी सलाम
विभा रानी श्रीवास्तव
शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंअतुलनीय प्रस्तुति
सादर
*पाँच लिंकों का आनन्द* मंच पर बहुत अच्छे-अच्छे
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक लिंकों से अवगत हुआ। मंच के सभी
चर्चाकारों को सेवाभावी कार्य के लिए
धन्यवाद।
...आनन्द विश्वास
सुन्दर व् सारगर्वित लिंकों से सजी पोस्ट साभार! आदरणीया यशोदा जी!
जवाब देंहटाएंभारतीय साहित्य एवं संस्कृति
आदरणीय भाई संजय जी
हटाएंआज की प्रस्तुति की चर्चाकार
मैं नहीं मेरी विभा दीदी हैं
सादर
यशोदा
बहुत सुन्दर प्र्स्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआनन्दमय प्रस्तुति
बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!