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मंगलवार, 15 मार्च 2016

242...नदी और संस्कृति पर खतरा

जय मां हाटेशवरी...

कुछ समय का अभाव...
कुछ नैट की गड़बड़ी...
चलो प्रस्तुति  तो बन ही गयी...
पर सब से पहले...
धुमिल जी  के कुछ शब्द...
"शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना की यह
लोहे की आवाज है या
मिट्टी में गिरे हुए खून
का रंग"

लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
उस घोड़े से पूछो
जिसके मुँह में लगाम है.


इल्‍जाम
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फि‍र एक बार धूप है और तन्‍हाई भी
कौन जाने कि‍स ओर सफ़र करना पड़े.....

दुनिया को डाँवाडोल करने की बढ़ती कोशिशें
दुनिया को डाँवाडोल करने की कोशिशें लगातार बढ़ती जा रही हैं। लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा है यह काम मुश्किल होता जा रहा है। उक्राइना में अमरीकी नीतियों की
हार हो रही है। रूस पर वित्तीय हमला करके भी रूसी रुबल को कोई भारी चोट पहुंचाना सम्भव न हो पाया है, यही नहीं रुबल धीरे-धीरे वापिस मजबूत हो रहा है। हांगकांग
में सूचना-विस्फोट के बाद चीन ने अपनी वित्तीय-आर्थिक सक्रियता बढ़ा दी है। ब्रिटेन, जर्मनी और दूसरे देशों ने भी चीन से यह अनुरोध किया है कि वह उन्हें अपने
एशियाई बैंक में शामिल कर ले। वहीं दूसरी तरफ ब्रिक्स विकास बैंक की गतिविधियां शुरू होने वाली हैं और इस तरह वित्तीय क्षेत्र में अमेरिकी प्रभुत्व पर प्रश्नचिह्न
लगता जा रहा है। इसलिए हो सकता है कि निकट भविष्य में अमेरिका कोई ऐसी हरकत करेगा, जो सभी नियमों और कायदों के खिलाफ होंगी। यह पहले की तरह कोई वैश्विक सूचनात्मक
धमाका हो सकता है। सद्दाम हुसैन के पास नरसंहारक हथियारों का जखीरा होने जैसी कोई सूचना हो सकती है, जिसके बाद उसके खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया जाएगा या उक्राइना
में गिराए गए बोर्इंग विमान की तरह की कोई ऐसी दुर्घटना हो सकती है, जिसकी गूँज सारी दुनिया को थर्रा देगी। इस घटना का उद्देश्य होगा संचार-सूचना साधनों को
नियंत्रित करना। इसलिए अब हम सभी को उस 'अप्रत्याशितÓ घटना या सूचना का इन्तजार करना चाहिए। लेकिन जब यह घटना घटनी शुरू होगी तो हमें यह ख्याल भी रखना होगा
कि हम अमेरिकी प्रचारतंत्र का शिकार न हों। हमें सबसे पहले यह सोचना होगा कि — इससे किसे लाभ होने वाला है। अनिल जनविजय
नदी और संस्कृति पर खतरा
35 लाख लोगों समेत कई अतिविशिष्ट मेहमानों के लिए भव्य मंच, दर्शकदीर्घा इत्यादि का निर्माण किया गया है। लगभग 650 मोबाइल शौचालय आयोजन स्थल पर होंगे, जो नदी
किनारे ही है। कई गाडिय़ों की पार्किंग की व्यवस्था है। तीन दिनों के कार्यक्रम के लिए आसपास के कई इलाकों की यातायात व्यवस्था प्रभावित होगी और इन सबसे जो
ध्वनि प्रदूषण होगा, सो अलग। क्या यह सब पर्यावरण के लिए घातक नहींहै। शायद इसी वजह से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आयोजकों पर पांच करोड़ का जुर्माना लगाया है,
जिससे श्री श्री रविशंकर सहमत नहींहैं। अगर वे इतना जुर्माना भर भी देते हैं तो क्या यह नदी की कीमत तय करने जैसा नहींहै। अच्छा होता अगर सभी पक्षों की दलीलें
सुनने के बाद केवल और केवल नदी के हित को देखते हुए फैसला लिया जाता। नदी भी बचती, संस्कृति भी और तब महोत्सव का आनंद उठाया जाता। साभार: देशबंधु (सम्पादकीय)


ईद मुबारक
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कल ईद है न
मेरी ईद, सूरज के किरणों सरीखी
तुमसे हो
बेशक सामने फहरा देना अपना आँचल या
लहरा देना जुल्फें
ताकि लगे दूज का चाँद या है सूरज



कुंठित मानसिकता से जन्मी आतंकी समानता
 आपातकालीन स्थितियों में संघ के स्वयंसेवकों को तत्परता से सहायता कार्य में संलिप्त देखा जा सकता है. संघ को आतंकी संगठन बताये जाने का समाज में संघ-विरोधी
छवि का निर्माण न होते देखकर संघ-विरोधी लोग, दल इतिहास में जाकर गड़े मुर्दे उखाड़ने का काम करने लगते हैं. किसी समय संघ पर लगा अल्पकालिक प्रतिबन्ध हो, गाँधी
की हत्या से संघ का जोड़ना हो, रामजन्मभूमि मुद्दे को संघ की देन बताना हो, सरकार का सञ्चालन संघ द्वारा करने का आरोप हो, संघ कार्यालय में तिरंगा फहराने का
विवाद हो, देश को भगवाकरण करने का आरोप लगाया जाना हो, इन सबमें विपक्षियों की हताशा ही सामने आती है.



सुनी है ?
सुनी है कोई खोई हुई पुकार ?
जिसे सुनकर एक चिर परिचित मुस्कान
तुम्हारे चेहरे पर खिल उठती है
सारी थकान भूलकर
यादों का सबसे बड़ा बक्सा
अपनी बातों में खोलकर तुम बैठ जाते हो
धागे कुछ मनुहार के
कुछ रुठने के
कुछ बेबाक हँसी के
कुछ रोने के
कुछ झगड़ने के
बिखेर देते हो अपने इर्द गिर्द


ख़बर
आज बस्ती में मचा कुहराम तो उसने कहा,
मौत किसके घर हुई पढ़ लेंगे कल अख़बार में।
अब तो हर त्यौहार का हमको पता चलता है तब,
जब पुलिस की गश्त बढ़ती शहर के बाज़ार में।
मेहमानों, कुछ-न-कुछ लेकर ही जाना तुम वहाँ,
दावतें अब ढल चुकी हैं पूरे कारोबार में।

धन्यवाद।




 








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