हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
आप जब 'अपने-अपने आग्रह', 'अपने-अपने सुकून', 'आदाब', 'पाकिस्तान', 'कुर्बानी', 'मज़हब', 'मजहबी किताबें' आदि पढ़ेंगे तो चाहे मेरे कितने ही विरोधी हों, कम से कम अंतर्मन से मेरे पक्षधर हो जाएँगे। कह सकता हूँ कि यह किताब अपने समय की ताज़ातरीन राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक आदि विसंगतियों को समझने की एक पाठशाला - जैसी है।
हम उन्हें देखकर सोच भी ना सके
कि हम जमीन थे, तो वह आसमान थे
शायद नजर थी हमारी उन पर
बनाना चाहते थे उनको हम सफर
मगर उन्हें अपना बना ना सके।।
ध्रुव नहीं मैं
किंचित उसकी ही तरह
उस आसमां पर
चमकने की चाह में
सफलता की सीढियां
चढ़ने की
कोशिश में
आगे बढ़ रहा हूँ मैं
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पुन: भेंट की आस...
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शानदार अंक
जवाब देंहटाएंसदाबहार
सादर नमन
आज की प्रस्तुति बहुत ही उम्दा वह सराहनीय है
जवाब देंहटाएंवाह!खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय और पठनीय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां संकलन
जवाब देंहटाएंवाह
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