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मंगलवार, 19 अक्टूबर 2021

3186 ...यह निश्चित दिखता है--हम सब बुद्ध नहीं हो सकते

सादर अभिवादन..
रवि, सोम और मंगल
सारी रचनाएँ लगभग एक समान
मेरे अलावा किसी और की ऐसी पसंद 
हो ही नहीं सकती.. फिलहाल..
रचनाएँ आपकी राह देख रही है



अरुणा के उसकी कक्षा में जाने के उपरान्त रजनी ने परिचय की व्यावहारिकता पूरी होने पर अरुणा के पापा ओम प्रकाश जी के साथ लगभग तीस मिनट तक बातचीत की। वार्तालाप की समाप्ति के बाद ओम प्रकाश जी ने विदा लेते हुए कहा- “आपका बहुत-बहुत शुक्रिया मैडम कि आपने मुझे सारी बात बताई। अब से हम इस बात का पूरा ध्यान रखेंगे।"

ओम प्रकाश जी के जाने के बाद रजनी कुर्सी पर सिर टिका कर बैठ गई। विचार-श्रंखला ने उसे अपने जीवन के बीस वर्ष पहले के समय में धकेल दिया, जब वह ब्याह कर इंजीनियर चंद्र कुमार के धनाढ्य व प्रतिष्ठित परिवार में आई थी।





मुझे अच्छी नस्ल का बेवफ़ाई अदा करो,
कर सकते हो तो खुद से मुझे जुदा करो,




जो एकाएक उठ कर चल देते हैं बस
इस धराधाम से
असमय
वो कितना विराट शून्य छोड़ जाते हैं पीछे।

पर,
यह भी है
कि हम कौन होते हैं ये कहने वाले
कि वे असमय चले गए




दिल बड़ा है और ये दुनिया भी फिर क्यों
खिल रहा  इसमें कोई  शतदल अकेले

कर्म किसका धर्म किसका मर्म किसका
डाल  पर  पंछी  कुतरता  फल  अकेले




तुझको देखके तो दिल में,
कोई संगीत गूँजता है।
धड़कने तो बढ़ जाती,
पर तू न पूछता है।
तेरी आँखों के मयखाने में,
हम तो डूब जायेंगे।




यह  निश्चित दिखता है--हम सब बुद्ध नहीं हो सकते और एक से अधिक भी नहीं  हो  सकते.
यह भी  निश्चित  दिखता  है  कि--हम  सभी  अंगुलिमाल भी  नहीं  हो  सकते  हैं  वह दस्यु  जो मानव-ह्त्या कर  उनकी  अँगुलियों  की  माला  गले  से  उतार  कर ---बुद्ध के  चरणों  में  बैठ सका.
हममें  से कई  भी  अंगुलिमाल  नहीं  हो  सकते  हैं.
मैंने  स्वम  से  पूछा----अशोक  के  सन्दर्भ  में---
जब  इतना  विशाल  साम्राज्य था  तो,कलिंग  पर  आक्रमण क्यों?
बुद्ध  की  शरण  में   आना  था  तो  सीधे  रास्ते  चल  कर  क्यों  ना  आ  गए--अशोक?
मैंने  स्वयं  ही  अपने  प्रश्नों  के उत्तर  यूं   दिए---

इति शुभम..


 

4 टिप्‍पणियां:

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