आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
व्रत का विरोध करने वालों को इसका अर्थ सिर्फ भोजन ना करना ही मालुम है। जब कि व्रत अपने प्रियजनों को सुरक्षित रखने, उनकी अनिष्ट से रक्षा करने की मंशा का सांकेतिक रूप भर है। ऐसे लोग एक तरह से अपनी नासमझी से महिलाओं की प्रेम, समर्पण, चाहत जैसी भावनाओं को कमतर आंक उनका अपमान ही करते हैं और जाने-अनजाने महिला और पुरुष के बीच गलतफहमी की खाई को और गहरा करने में सहायक होते हैं ! वैसे देखा जाए तो पुरुष द्वारा घर-परिवार की देख-भाल, भरण-पोषण भी एक तरह का व्रत ही तो है जो वह आजीवन निभाता है, पर इस बात का प्रचार करने या सामने लाने से विघ्नसंतोषियों को उनके कुचक्र को, उनके षड्यंत्र को कोई फायदा नहीं बल्कि नुक्सान ही है, इसलिए इस पर सदा चुप्पी बनाए रखी जाती है !
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कब तक ख़ुश होते रहोगे
सिक्कों की खनखनाहट सुनकर,
कभी तो गुल्लक उठाओ,
दे मारो ज़मीन पर,
बिखर जाने दो सिक्के,
लूट लेने दो, जिसे भी लूटना है,
जितना भी लूटना है.
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सुलगते सूरज से दूर रखकर अमन-सुकूँ का क़याम लिख दूँ ॥
मसर्रतों पै गहन प्रदूषण अवामी ख़ुशियाँ बिलख रही हैं ।
तुम्हीं बताओ ऐ मेरे रहबर कहाँ से बेहतर निज़ाम लिख दूँ ॥
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मिलते हैं अगले अंक में।
बहुत सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंआगाज मन को तरंगित कर गया
नारी जाति का एक सच बयां कर गया
आभार
सादर
सुन्दर अंक.आभार
जवाब देंहटाएंसामयिक तथा सार्थक रचनाओं का संकलन । बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐
जवाब देंहटाएंसमसामयिक सुन्दर रचनाएँ, हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंसभी को शुभकामनाएँ💐
बहुत सुंदर संकलन, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी।
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