।। उषा स्वस्ति।।
"हुआ सवेरा
ज़मीन पर फिर अदब
से आकाश
अपने सर को झुका रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
नदी में स्नान करने सूरज
सुनारी मलमल की
पगड़ी बाँधे
सड़क किनारे
खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है"
~निदा फ़ाज़ली
भोर जिसमें छुपी हुई आस है,नव विहान है और साथ हम सब की पंच रंगी शब्दों -भावों का मेला है, तो फिर बढतें हैं खास लिंकों की ओर..✍️
नभ के रंग
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मैं उस वक़्त सबसे असहाय होती हूंँ!
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क्लांत हो कर पथिक बैठा
नाव खड़ी मझधारे
चंचल लहर आस घायल
किस विध पार उतारे।
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नाक भी बाकी रहे मै भी उड़ा ली जाए
थोड़ी शिक़्वों की शराब आपसे पा ली जाए
क्यूँ नहीं ऐसे भी कुछ बात बना ली जाए
आप तो वैसे भी मानेंगे नहीं अपनी कही
क़स्म ली जाए भी तो आपकी क्या ली जाए..
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
महलया पर्व की शुभ कामनाएँ
जवाब देंहटाएंशानदार अंक
आभार
सादर
सुप्रभात 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति,मेरी रचना को जगह देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद🙏
रचना-चयन में परिश्रम साफ-साफ अनुभव होता है। साधुवाद। 'मैं उस वक़्त सबसे असहाय होती हूंँ!' मुझे अछी लगी।
जवाब देंहटाएंशानदार और गहन अंक...। सभी साथियों को खूब बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सारगर्भित प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई, आभार 🙏
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमनभावन शुरुआत, सभी रचनाकारों को बधाई।
सभी रचनाएं सुंदर सहज।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।