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बुधवार, 6 अक्टूबर 2021

3173..बिन्दु में सिंधु

 ।। उषा स्वस्ति।।

"हुआ सवेरा

ज़मीन पर फिर अदब

से आकाश

अपने सर को झुका रहा है

कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं

नदी में स्नान करने सूरज

सुनारी मलमल की

पगड़ी बाँधे

सड़क किनारे

खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है"

~निदा फ़ाज़ली

भोर जिसमें छुपी हुई आस है,नव विहान है और साथ हम सब की पंच रंगी शब्दों -भावों का मेला है, तो फिर बढतें हैं खास लिंकों की ओर..✍️

नभ के रंग

1
बढ़े तपिश
समाने लगे फिर
बिन्दु में सिंधु ।
2
आई जो आँधी
लो तिनका-तिनका
हुआ बसेरा ।
3


💢💢

मैं उस वक़्त सबसे असहाय होती हूंँ!

मैं उस वक्त दुनिया की 
सबसे कमजोर व असहाय 
शख़्स खुद को महसूस करती हूंँ, 
जब रोते बच्चे के आंखों से 
आंसू नहीं ले पाती हूंँ! 

मैं उस वक्त सबसे 
असहाय व लाचार होती


💢💢

खण्डित वीणा

क्लांत हो कर पथिक बैठा

नाव खड़ी मझधारे 

चंचल लहर आस घायल

किस विध पार उतारे।

💢💢




शोक सभा में
तथाकथित स्वर्गवासी की तस्वीर पर
उन्होंने फूल चढ़ाये
प्रणाम किया
और अपनी अद्भुत श्रद्धांजलि

💢💢

नाक भी बाकी रहे मै भी उड़ा ली जाए

थोड़ी शिक़्वों की शराब आपसे पा ली जाए

क्यूँ नहीं ऐसे भी कुछ बात बना ली जाए

आप तो वैसे भी मानेंगे नहीं अपनी कही

स्म ली जाए भी तो आपकी क्या ली जाए..

।। इति शम ।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️


6 टिप्‍पणियां:

  1. महलया पर्व की शुभ कामनाएँ
    शानदार अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात 🙏
    बहुत ही उम्दा प्रस्तुति,मेरी रचना को जगह देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. रचना-चयन में परिश्रम साफ-साफ अनुभव होता है। साधुवाद। 'मैं उस वक़्त सबसे असहाय होती हूंँ!' मुझे अछी लगी।

    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार और गहन अंक...। सभी साथियों को खूब बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर, सारगर्भित प्रस्तुति।
    बहुत बधाई, आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    मनभावन शुरुआत, सभी रचनाकारों को बधाई।
    सभी रचनाएं सुंदर सहज।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं

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