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गुरुवार, 21 अक्तूबर 2021

3188...अब भीड़तंत्र में उन्माद उच्चतर उठान पर है...

सादर आभिवादन।


यह हिंसक होता समाज 

सभ्यता की ढलान पर है, 

अब भीड़तंत्र में उन्माद

उच्चतर उठान पर है। 

-रवीन्द्र  


पढ़िए गुरुवारीय अंक में चुनिंदा रचनाएँ- 

अभिवादन


नमः  + करः नमस्कारः

इसमें हाथ जोड़े जाते हैं इसलिए यह एक क्रिया भी है।

इसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

नमस्कार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में समान अवस्था वालों को किया जाता है।

अपने से बड़ों को – माता-पिता , गुरु, आध्यात्मिक गुरु और देवताओँ को प्रणाम किया जाता है।


हम हैं विश्वगुरु

हमसे रौशन शफ़क़ हमारे,परचम को नस्तक जहाँ करेगा

जो साख ढहाया हिंद के कीर्ति की जल आके यहाँ भरेगा

हम विश्व पटल पर उभर रहे हैं नव युग की लाली बनकर

तरल,विनम्र है मन लेकिन डटे पराक्रमी बलशाली बनकर

 

शरद का चांद | कविता | डॉ शरद सिंह


यादों के धब्बे

कैसे धोएगा चांद

मुझे पता नहीं

और कब तक

रोएगा चांद

मुझे पता नहीं

 

पनिहारिन

जूठे वासन आँगन देखें

सास देखती अब चूल्हा

रिक्त पतीली बाट जोहती

कौन पकाएगा सेल्हा

तपिश सूर्य  से दग्ध हुई वो

ज्येष्ठ धूप में बंजारन

लिए भार मटकी का चलती

कोस अढ़ाई पनिहारन

 

 आज का शेर


मची  है  लूट  चारों  ही  तरफ से,

बताओ  आप  कैसी  रहजनी है।


पत्र पेटी (लघुकथा )

उसे याद है मां जी की पहली आंख का आपरेशन के समय मां जी के मायके के लोग आए थे तो अलग से रसोइया रखना पड़ा था।ऊपर से वह स्वयं सभी लोगों की सेवा- सुश्रुषा एवं आवभगत में लगी रहती थी। फिर भी सभी लोग उसकी निंदा करते रहते,ताने देते रहते।अलसी,निकम्मी,अलहेली, बेवकूफ,मुंह जोर आदि कितनी उपाधियां उसे प्रदान किया गया था।उन पुरानी बातों को याद कर उसके तन-मन में आग लग गयी।रोगी से ज्यादा देख-रेख और सेवा तो रोगी को देखने आने वालों की करनी पड़ती है। कोई सेवा या मदद के लिए थोड़े ना आते हैं।

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले गुरुवार। 


रवीन्द्र सिंह यादव  


6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ? बेहद खूबसूरत अंक। सभी रचनाएं सराहनीय।

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी स्वस्थ व प्रसन्न रहें, यही कामना है

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन संकलन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं

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