सादर आभिवादन।
यह हिंसक होता समाज
पढ़िए गुरुवारीय अंक में चुनिंदा रचनाएँ-
नमः + स + करः = नमस्कारः
इसमें हाथ जोड़े जाते हैं
इसलिए यह एक क्रिया भी है।
इसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप
में प्रयोग किया जा सकता है।
नमस्कार प्रत्यक्ष या परोक्ष
रूप में समान अवस्था वालों को किया जाता है।
अपने से बड़ों को – माता-पिता , गुरु, आध्यात्मिक
गुरु और देवताओँ को प्रणाम किया जाता है।
हमसे रौशन शफ़क़ हमारे,परचम को नस्तक जहाँ करेगा
जो साख ढहाया हिंद के कीर्ति की जल आके यहाँ भरेगा ।
हम विश्व पटल पर उभर रहे हैं नव युग की लाली बनकर
तरल,विनम्र है मन लेकिन डटे पराक्रमी बलशाली बनकर ।
शरद का चांद | कविता | डॉ शरद सिंह
यादों के धब्बे
कैसे धोएगा चांद
मुझे पता नहीं
और कब तक
रोएगा चांद
मुझे पता नहीं
जूठे वासन आँगन देखें
सास देखती अब चूल्हा
रिक्त पतीली बाट जोहती
कौन पकाएगा सेल्हा
तपिश सूर्य से दग्ध हुई वो
ज्येष्ठ धूप में बंजारन
लिए भार मटकी का चलती
कोस अढ़ाई पनिहारन
मची है लूट चारों ही तरफ से,
बताओ आप कैसी रहजनी है।
वाह ? बेहद खूबसूरत अंक। सभी रचनाएं सराहनीय।
जवाब देंहटाएंवेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार आपका
सादर
सभी रचनाएँ उत्तम
जवाब देंहटाएंसभी स्वस्थ व प्रसन्न रहें, यही कामना है
जवाब देंहटाएंव्वाहहहह
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार