हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
दशहरा के बाद.. बिहार में (मुझेअन्य राज्य का अनुभव नहीं) जंग शुरू हो जाता है। स्पेशल ट्रेन चालू होने के बाद भी ट्रेन के छत पर भीड़, पायदान में लटके लोग। वाशरूम का रास्ता ब्लॉक कर रखा.. जुगाड़ से टिकट जुटाए जुझारू बिहारी। देश के किसी कोने में हों लौटेंगे छठ में।
जब गाँव से इतना प्यार है तो बिहार वृद्धाश्रम क्यों बनता जा रहा..; जिनके बच्चे विदेश जा बसे या जिनके घर में छठ नहीं होता..., मकड़जाल में उलझे वृद्ध की पथराई आँखें तलाश रही..
सभी बच्चों को ईनाम के रूप में पिकनिक पर अगले दिन ले जाना तय हुआ। वैसे तो जो उन्होंने किया था। वो हर ईनाम से परे था। जितनी प्रशंसा करो उतनी ही कम है।
अगर उन्होंने अच्छा किया, तो उन्हें उसके स्वादिष्ट गाजर के केक का एक अतिरिक्त टुकड़ा दिया जाएगा। सफाई का दिन अच्छा चल रहा है और बच्चों ने मोपिंग का आनंद लिया। और फर्श को साफ़ कर रहा है। जल्द ही खाने का समय हो गया। रिकी और रिया गाजर केक के काटने का इंतजार नहीं कर सकते थे।
रविवार के दिन सभी अजय के मोहल्ले में गए. सबके हाथ में एक-एक टोकरी और झाटू थे। सड़क पर झाडू लगाकर उन्होंने कूड़ा इकट्ठा किया। नालियों की सफ़ाई की और पानी का रास्ता बनाया।
ना मैं गंदगी करूंगा, न ही करने दूंगा
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पुन: भेंट होगी...
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जबरदस्त अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर नमन
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंस्वच्छता के ऊपर सुंदर सार्थक कथाओं तथा सारगर्भित आलेख से सजा पठनीय और सराहनीय अंक ।
साहित्य और पर्यावरण विषय पर सारे निबंध बहुत ही ज्ञानवर्धक और सामयिक हैं, सुधा सिंह का निबंध निश्चय ही सराहनीय और तथ्यपरक है ।
आदरणीय दीदी, आपकी मेहनत से लगाए गए सभी सूत्रों पे जाकर बहुत ही रुचिकर जानकारियां मिलीं,आपके श्रम को मेरा सादर नमन और वंदन ।
हार्दिक धन्यवाद आपका
हटाएंएकल परिवार के सुख की काल्पनिक अनुभूति को जीने की चाह मेंं अपने बुजुर्गों की उपेक्षा आज के दौर का सहज चलन बनता जा रहा है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय भूमिका दी।
विषय आधारित कहानी,लेख,निबंध सभी सराहनीय हैं।
आपके वैचारिकी मंथन से सजी श्रमसाध्य प्रस्तुति सदैव विशेष होती है।
प्रणाम दी
सादर।
good post
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