सादर अभिवादन।
नवरात्र आरंभ हुए।
शुभकामनाएँ !
पढ़िए गुरवारीय अंक की चुनिंदा रचनाएँ-
कह रही है मुझसे मेरी कलम
कि बेकार की लिखत-पढ़त करके
इन दिलजलों को
तू और सता नहीं।
जैसे कोई
रंगों के महोत्सव
के
बीच
किसी अधखिले फूल की
प्रार्थना।
बंजर भूमि मै तब्दील होती गई
धन-वैभव ना सुख अपार
ना माँगू मैं ये संसार।
पावन कर दो आत्मा मेरी
होगा "माँ" तेरा उपकार।।
"तू कहाँ से समझदार हुई ? तुझसे बड़ा तो तेरा भाई है....?" "हाँ, है तो? परंतु कीमती चीज़ नहीं, बाबा ने उसे अपनी सारी दौलत सौंपी है।""तुम दोनों यहाँ बैठी हो? चलो अब डांट खाओ केतकी मैडम की।"स्कूल की आया ने दोनों को क्लास की ओर खदेड़ दिया।
सुप्रभात रवींद्र जी...। आभार आपका मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद...। नवरात्र की शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंअपमान की थाली में
जवाब देंहटाएंआसमान की तरफ इशारा करके
मेरे पंखों को कसके पकड़ा गया
मेरी हथेलियों पर नमक रोपकर
मुझे मुस्कुराने की हिदायत दी गई
बेहतरीन अंक
आभार
धन्यवाद
हटाएंसुन्दर चयन। लघु कथा 'इज्जत' बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की अनेकानेक शुभकामनाएं, रवीन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंआज के पन्ने पर जगह देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । हम सबके ह्रदय में माता की ज्योत जले ।
सभी को नवरात्र की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसभी को नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं । बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचनाओं का संकलन,लाजवाब प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय सर, मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार
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