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बुधवार, 13 अक्टूबर 2021

3180..एक रोज नदी के उस मुहाने पे..

 


।। प्रातःवंदन ।।
"तेरे प्रकाश में चेतन संसार वेदना वाला,
मेरे समीप होता है पाकर कुछ करुण उजाला।"
 जयशंकर प्रसाद
अभिव्यक्ति का वैशिष्टय जयशंकर जी की कविताओं का विशेष आकर्षण है। दार्शनिक सोच यथार्थवादी विचारों के तालमेल संग पंक्तियों के साथ आज पढ़ें .✍️



सबके अपने रास्ते
अपने अपने सफ़र 
रास्तों के काँटे अपने 
अपने अपने दर्द

अपनी अपनी मंज़िल
अपना अपना दुख
अपनी अपनी चाहते..

⚜️⚜️

अर्सा एक लम्बा गुजर गया उनसे मुखातिब हुए l
महताब वो भी कभी पिघला होगा दीदार के लिए ll


रंगीन यादों की अज़ीज़ ख्यालातों दर्पण में l
टकरा गए वो एक रोज नदी के उस मुहाने पे ll 

अक्सर मिला करते थे चाँद चकोर जिस किनारे पर l 
लिखने नाम अपना पानी की उन मचलती





माँ 

दुर्गा

कुमारी

मनोहारी

वरदायिनी

जगत जननी

सर्वदा पूजनीय ।।
⚜️⚜️


किसी एक चन्द्रविहीन रात में, देखा था
उसे जनशून्य रेलवे प्लेटफॉर्म में,
आँखों में लिए शताब्दियों
का अंधकार, मायावी
आकाश के पटल
पर सुदूर
तारे  
खेल रहे थे सांप - सीढ़ी, ज़िन्दगी देख
रही थी, बहुत दूर..
⚜️⚜️





उसी के क़दमों की आहट सुनाई देती है 
कभी -कभार वो छत पर दिखाई देती है 

वो एक ख़त है जिसे मैं छिपाए फिरता हूँ 
जहाँ खुलूस की स्याही दिखाई देती..
⚜️⚜️
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

5 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार अंक
    पर्वों की शुभकामनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात🙏
    वाह बहुत ही शानदार जानदार और उम्दा प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को ढेर सारी बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन लिंक्स मुहैया कराए । शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर,सार्थक सूत्रों का चयन किया है आपने पम्मी जी, इस शानदार प्रस्तुति में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी सम्पादकों और पाठकों को दुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं |पम्मी जी आपको भी सादर अभिवादन और शुभकामनाएं |

    जवाब देंहटाएं

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