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बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

2049..शोर के अंदर सन्नाटा है..

 


।। उषा स्वस्ति ।।

" अब यह नव प्रभात मधुमय हो!

मंगलमय, द्युतिमय,शोभामय,पावन अरुणोदय हो!

अंध निशा का वक्ष चीर कर

फूटें ज्ञान रश्मियाँ भास्वर

युग युग की हिममय जड़ता पर 

नव जीवन की जय हो!

कोई कहीं न कातर,परवश, 

साधनहीन सभय हो..!!"

गुलाब खंडेलवाल

अरुणोदय सम्भावित आलोक स्तंभ की तरह जिसके प्रकाश में  विचारों को नवीन गति मिलतीं हैं..
इसी क्रम में आज लाई हूँ चुनिंदा लिंक जिसे आप सभी पढ़ें और चंद शब्दों से अलंकृत करें.✍️

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काल-चक्र की क्रीड़ा-कला!

कई दिनों से रूठी मेरे,

अंतर्मन की कविता।

मनहूसी, मायूसी, मद्धम,

मंद-मंद मन मीता।

शोर के अंदर सन्नाटा है,

शब्द, छंद सब मौन।

कांकड़-पाथर-से भये आखर,

भाव हुए हैं गौण।

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महीनिया

एक बार एक गाँव में एक व्यक्ति रहता था जिसका नाम महीनिया था। महीनिया का अपना घर तो था लेकिन घरवाली और बच्चे नहीं थे। हर जगह ऐसे लोग होते हैं जो शादी नहीं करते  या किसी वजह से उनकी शादी नहीं  हो पाती है। महीनिया की भी शादी नहीं हो पाई थी। अकेला होने की वजह से जब मन किया किसी ..

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अब न झरोखा है, न रोशनी, न ही उम्मीद, न ही कोई खिलखिलाती पत्तियों वाले नवयोवन से मदमस्त वृक्ष...। अब बस मकान है, मकानों के बीच फंसा हुआ, जबरदस्ती उलझा हुआ, दबा-कुचला सा...। महानगर में प्रकृति और उसे देखने का उत्साह वेंटीलेटर पर है, सभी को तरक्की चाहिए, वृक्ष किसी को नहीं चाहिए, भागती हुई जिंदगी में पसीने से लथपथ अवस्था में छांव भी चाहिए लेकिन वृक्ष नहीं चाहिए...ओह वो झरोखा आखिर कहां खो गया जो हवा नहीं बल्कि जिंदगी की ताजगी साथ लाकर मकान को घर बना जाया करता था...अब मकान

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रति और पार्वती संवाद ......

रति की मूर्च्छा टूटी तो एक तरफ गूंज रही थी देववाणी की छलना

दूसरी तरफ उसकी उत्कट वेदना का सूझ रहा था कोई भी हल ना

व्याघातक दुर्भाग्य दंड से हत , गलित , व्यथित , शोकाकुल रति को

झुला रहा था विकट , विकराल , विभत्स , विध्वंसक मायावी पलन

तत्क्षण ही वह निज प्राण को तज दे या कि वह चिर प्रतीक्षा करे

या हृदय में अभी देवों और ॠतुपति के द्वारा दिए कल्प शिक्षा धरे

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दिल की दास्तां 

जरा गौर से देखा तो यही पाया 

मगज है कि शिकायतों का इक पुलिंदा 

जो हर बात पे खफा रहता था

यूँ तो जमाने के लिए बंद था दिल का द्वार 

पर उनमें ही हो जाता था 

खुद का भी शुमार ..

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।। इति शम ।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️




8 टिप्‍पणियां:

  1. आभार..
    शानदार प्रस्तुति के लिए
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया लिंकों से सजा सुंदर और सफल प्रयास। सार्थक प्रस्तुति के लिए आपको बधाई। सभी रचनाकारों को भी बधाई। मुझे भी शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. गुलाब खण्डेलवाल की सुंदर रचना से सजी भूमिका और पठनीय रचनाओं के सूत्र, बहुत बहुत बधाई इस सुंदर अंक के लिए, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. मधुमयी, शोभामयी, पुनित पावन सूत्रों ने मनमोहनी हलचल मचा दी है । हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  5. अप्रतिम सृजन बधाई हो इस सुन्दर अंक के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति, बेहतरीन रचनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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