दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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सोमवार, 1 फ़रवरी 2021
2034.....दुनिया अच्छी नहीं है .
जय मां हाटेशवरी.......
क्षमा-प्रारथी हूं......
नियमित उपस्थित नहीं हो पा रहा हूं......
अब कोशिश करूंगा नियमित रहूं......
पेश है......मेरी पसंद.....
हवा खामोश है ..डॉ. वर्षा सिंह
मात- शह के खेल में सांसे उलझती जा रहीं
बन गई है ज़िन्दगी चौसर, हवा ख़ामोश है
इस क़दर होने लगी है खुल के अब धोखाधड़ी
हो गया विश्वास भी जर्जर, हवा ख़ामोश है
नदियों में कंचन मृग ....जयकृष्ण राय तुषार
दुःख की
छायाएं हैं
पेड़ों के आस-पास,
फूल,गंध
बासी है
शहरों का मन उदास,
सिर थामे
बैठा दिन
ढूंढेगा बाम कहाँ ?
सृजन ...कुसुम कोठारी
झंझवातों में उलझता
पांख बांधे मन भटकता
बल लगा के तोड़ बंधन
मोह धागों में अटकता
क्लांत तन बिखरा पड़ा है
बुन रही है रात सपने।।
दुनिया अच्छी नहीं है ...संदीप शर्मा
बादल की पीठ पर
कुछ
गहरे निशान हैं
जो
फुटपाथ
तक
नज़र आ रहे हैं।
लैंपपोस्ट
से
सिर टिकाए
एक
भयभीत सा बच्चा
उन्हें सहला रहा है।
पहली कहानी :) ....मन्टू कुमार
ये कहना कि
मैं किसी से प्रेम करता हूँ
और उस प्रेम को निभाना,
दो अलग अलग चीज़ें हैं।
मैंने अपने प्रेम को
तुम्हारे लिए हमेशा समर्पण माना।
लोगों के आने जाने से
विचार तो बदल जाते हैं
पर कुछ ऐसी भावनाएं
जो समय के साथ उत्पन होती हैं
वो नहीं बदल पाती ताउम्र।
आज बस इतना ही.......
फिर मिलेंगे......
धन्यवाद।
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