शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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बरसभर की टकटकी के बाद
लौटते हैं मौसम
सर्दियों की पहली आहट पर
सिहरते सपने जाग कर चौखट को
बुहारते हैं पलकों से
पर रजाई,कंबल से अकबकाया
दुशाले ,अलाव की थामे गर्माहट
समय पहाड़ की
ढलान पर हो खड़ा मानो
चार दिन में मैदानों से
लुढ़कती सर्दी और
इकदिवसीय त्योहार-सा
पलक झपकते उड़न छू मधुमास,
मनुष्य के मन के मौसम की तरह
प्रतिबिंबित होने लगा है
प्रकृति का अनमना व्यवहार
शायद...
सृष्टि कूटभाषा में
कर रही हमें सचेत ,
कुछ दे रही संकेत ।
#श्वेता सिन्हा
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आइये आज की रचनाएं पढ़ते हैं-
वह
जिंदगी फूल सी महका करे दिन-रात
कितनी तरकीब से सामान जुटाता है
न कमी रहे न कोई कामना अधूरी
बिन कहे राह से हर विरोध हटाता है
हकीकतों ने पाला है
हम पले बरखा की फुहारों में ।
झीलों तालाबों नदियों किनारों ,
समुद्री तूफ़ानों और मँझधारों में ।।
काग़ज़ की नाव बना हमने सागर मथ डाला है
सच हमें हक़ीक़तों ने पाला है..
रंगों
की पीढ़ी
उम्र
से पहले
उन्हें ओढ़कर
सतरंगी आकाश
पर टांकने लगती है
कोरे जज्बाती
सपने।
जब होती तारीफ़ हमारी
अहम् साथ भी लाता है
पर जब कोई ढूंढ-ढूंढ कर
नए नुक्श बतलाता है
फिर पानी की भांति निर्मल
करके हमें वह जाता है
कैसे मधुरिम थे वो सब दिन ,
कितनी प्यारी सी सखियाँ थीं |
कैसे चिंता रहित विचरते ,
हर पग पर बिखरी खुशियाँ थीं |
कभी खेलते आँख मिचोनी ,
गुड़ियों की हम शादी करते |
झूठ मूठ के व्यंजन रच कर ,
सबसे आ खाने को कहते |
मुख कलियों का चूम रहा है
कौन हीन है कौन श्रेष्ठ है
संग सभी के झूम रहा है.
भवन-भवन में मगन-मगन में
फ़िलहाल हम बात कर रहे हैं "लोहा सिंह" जी उर्फ़ "रामेश्वर सिंह 'कश्यप'" जी की , तो ये जान कर अचरज लग सकता है आपको कि उन्होंने अपनी अकूत लोकप्रियता हासिल करने वाली नाटक-श्रृंखला "लोहा सिंह" के मुख्य पात्र "लोहा सिंह" की भाव भंगिमा और बोलने की शैली की प्रेरणा अपने पिता के एक नौकर के अवकाश-प्राप्त फौजी भाई की गलत-सलत अंग्रेजी , हिन्दी और भोजपुरी मिला कर एक नयी भाषा बोलने की शैली से मिली थी क्योंकि उन फ़ौजी सज्जन के इस तरह बोलने से गाँव वालों पर इसका बड़ा रोबदार असर पड़ता था। मतलब .. लोग बहुत प्रभावित होते थे।
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आज बस इतना ही
कल मिलिए विभा दीदी से
व्वाहहह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक..
सादर..
सुप्रभात !प्रिय श्वेता जी, मेरी रचना की पंक्ति को शीर्ष में उद्धृत देख मन अतिरेक हर्ष से भर गया..सुन्दर रचनाओं के प्रकाशन एवं प्रस्तुति के लिए आप आभार की पात्र हैं..विशेष शुभकामनाएं एवं आपका हृदय से अभिनंदन..जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका के साथ पठनीय रचनाओं के लिकन्स, बहुत बहुत आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भूमिका के साथ पठनीय लिंकों का चयन श्वेता जी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स |हार्दिक शुभकमनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सराहनीय संकलन |
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाएं, बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर व आनंदकर प्रस्तुति। इतने दिनों के बाद पांच लिंकों के आनंद पर आ कर मन आनंदित हो गया। परीक्षाओं के कारण बीच -बीच में गायब हो जाती हूँ पर यहां आना सदा ही एक सुखद अनुभव है। पांच लिंकों का आनंद हम सब के लिए हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चूका है। यहां प्रस्तुत की गयी रचनाएँ मैं खुद भी पढ़ती हूँ साथ ही साथ नानी और माँ को भी पढ़ाती हूँ।
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति की भूमिका अत्यंत सुंदर और माँ प्रकृति के प्रति सजग करती है। हर एक रचना प्रेरक और आनंदकर और नई जानकारी देने वाली थी। अब से नियमित आती रहूँगी।
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंगहरी रचनाओं का संग्रह...। बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ पढ़कर मन आनन्दित हो उठा। बहुत बहुत बधाई।
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