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रविवार, 7 फ़रवरी 2021

2032 ..ये अंतर्रात्मा क्या होती है माँ

सादर वन्दे
आज की प्रस्तुति 
में पढ़िए कुछ नई-जूनी रचनाएं

छवि को देख गुंजन को यकीन नहीं हुआ कि यह वही
छवि है जिसकी चंचलता और शरारतों से उन
पाँच सखियों की मंडली गुलजार हो जाया करता
थी । अगर एक दिन वह न आती तो दूसरे दिन उसकी
जम कर क्लास लगती कि कल वह
कहाँ थी ? कॉलेज से बी.ए.करने के बाद वह अपने
पिताजी के ट्रांसफर के साथ ही परिवार सहित भोपाल
शिफ्ट हो गई । उदयपुर में सभी से फोन सम्पर्क कुछ
समय रहा लेकिन धीरे-धीरे सभी घर-गृहस्थी में रम गई ।


किसी भी कविता में
दो पक्ष होते हैं-
कलापक्ष तथा भावपक्ष;
कलापक्ष का निर्वाह होता है-
व्याकरण और गणित द्वारा
जो होता है- नितान्त यांत्रिक।
भावपक्ष असीम है
यह मन को प्रतिबिम्बित करता है


ये अंतर्रात्मा क्या होती है माँ?
बिटिया ने एक कहानी पढ़ते-पढते पूछा।
'मन' मैंने कहा।
'मन' का मतलब क्या?उसने पूछा!
"मन जो दिमाग से अलग होता है।
बुद्धि-विवेक,छल-प्रपंच से अलग
जिसकी ध्वनि सुनी जा सकती है,
जहाँ से सदा सच्ची और अच्छी आवाज़ आती है।
मैंने कहा।


होती हैं थोड़ी अल्हड़ थोड़ी बिंदास
घूमती रहती हैं आजीवन धुरी बन कर
अपनी माँ के आसपास
माँ की अनुपस्थिति, और
जिम्मेवारियों का बोझ
बना देता है उन्हें वक़्त से पहले समझदार
फिर भी अपनी किस्मत मानकर
हर ताना सह लेतीं हैं,


जो सभी देख रहे हैं।
खीझता हुआ आदमी
फटे सपनों से
बतियाने से डरता है
वो
नहीं कर पाता
संवाद
नहीं दे पाता
पायजामें की जेब में रखे
अपने
सपने पर कोई तर्क।
.....
बस..
कल कोई और
सादर

7 टिप्‍पणियां:

  1. पांच लिंकों का आनन्द की सुन्दर सी प्रस्तुति में सृजन सम्मिलित करने के लिए हृदय से आसीम आभार दिव्या जी!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर अंक। अच्छी रचनाओं का संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  3. जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत आभारी हूं...। सभी रचनाएं और उनका चयन उम्दा है। बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. सराहनीय रचनाओं से सजी सुंदर प्रस्तुति में मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ दिबू।
    सस्नेह शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  5. पांच लिंको का आनंद का ,मैं जबसे ब्लॉग लिख रही हूं तबसे घर आँगन जैसा एहसास रहा बहुत बहुत धन्यवाद मंच को और दिव्या जी आपको मेरी रचना को स्थान देने हेतु

    जवाब देंहटाएं

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