सादर अभिवादन......
रात नहीं ख्वाब बदलता है,
मंजिल नहीं कारवाँ बदलता है;
जज्बा रखो जीतने का क्यूंकि,
किस्मत बदले न बदले ,
पर वक्त जरुर बदलता है
अब पेश है......मेरी पसंद.......
नेह कली मुरझाती है।
हमारा शरीर और ग्रहों का वास
सफर
ओस से भीगी टेबिल, कुर्सियां जो रात भर गपशप में बाहर रहकर चांदनी की
सिसकियों में डुबकी लगाती रही हो ...
अखबार के पन्नों पर नहीं आ पाने वाली बेखौफ़ खबरों की आज़ाद हँसी ...
कोयले के देह को छूती लहराती लिपटने को आतुर नारंगी लौ ...
मेरी मुक्ति ने अभी नवयौवना का रूप लिया भर ....
गुलमोहर
हर वक्त जब यूं #मुस्कुराकर चले जाते हो !
"गाता है ऋतुराज तराने"... डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
नीड़ बनाने को पक्षीगण,तिनके चुन-चुनकर लाते,
लटके गुच्छे अंगूरों के, सबके मन को भरमाते,
कल-कल, छल-छल का स्वर भाता गंगा जी की धार का।
गाता है ऋतुराज तराने, बहती हुई बयार का।।
धन्यवाद।
बढ़िया अंक..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट संकलन ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन । "गुलमोहर" को साझा करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर संकलन।
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों के संकलन में मेरी पोस्ट का लिंक देने के लिए आपका आभार आदरणीय कुलदीप ठाकुर जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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