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मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

2034....दुनिया अच्छी नहीं है ...

जय मां हाटेशवरी....... 
क्षमा-प्रार्थी हूं...... 
नियमित उपस्थित नहीं हो पा रहा हूं...... 
अब कोशिश करूंगा नियमित रहूं...... 
पेश है......मेरी पसंद..... 

मात- शह के खेल में सांसे उलझती जा रहीं 
बन गई है ज़िन्दगी चौसर, हवा ख़ामोश है 

इस क़दर होने लगी है खुल के अब धोखाधड़ी 
हो गया विश्वास भी जर्जर, हवा ख़ामोश है 

दुःख की 
छायाएं हैं 
पेड़ों के आस-पास, 
फूल,गंध 
बासी है 
शहरों का मन उदास, 
सिर थामे 
बैठा दिन 
ढूंढेगा बाम कहाँ ?

झंझवातों में उलझता 
पांख बांधे मन भटकता 
बल लगा के तोड़ बंधन 
मोह धागों में अटकता 
क्लांत तन बिखरा पड़ा है 
बुन रही है रात सपने।। 

बादल की पीठ पर 
कुछ 
गहरे निशान हैं 
जो 
फुटपाथ 
तक 
नज़र आ रहे हैं। 
लैंपपोस्ट 
से 
सिर टिकाए 
एक 
भयभीत सा बच्चा 
उन्हें सहला रहा है। 

ये कहना कि 
मैं किसी से प्रेम करता हूँ 
और उस प्रेम को निभाना, 
दो अलग अलग चीज़ें हैं। 
मैंने अपने प्रेम को 
तुम्हारे लिए हमेशा समर्पण माना। 
लोगों के आने जाने से 
विचार तो बदल जाते हैं 
पर कुछ ऐसी भावनाएं 
जो समय के साथ उत्पन होती हैं 
 वो नहीं बदल पाती ताउम्र।
 
आज बस इतना ही....... 
फिर मिलेंगे...... 
धन्यवाद।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आभार आपका
    अच्छी रचनाएँ
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा लिंक्स चयन
    श्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर लिंक लिए सुंदर हलचल!
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छी रचनाएं, गहरा लेखन। खूब बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छे लिंक्स का बेहतरीन संयोजन कुलदीप ठाकुर जी, मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार आपका 🙏
    शुभकामनाओं सहित,
    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं

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