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सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

2047 ..कूदना छोड़, उड़ना सीख मेंढक, बखत पड़े तो तैर भी लिया कर

सादर नमस्कार
रविवार का दिन
लोगों की आवा-जाही में बीत जाता है
हम ठाले-बैठें करें को का करें
चलिए पिटारा ही जमा लेते हैं
देखिए आज क्या है .....

द्रोपदी के मन में भी
कभी सम्मानित न हुए होंगे
उसके मन में तो हमेशा ही
कुछ तीक्ष्ण प्रश्न रहे होंगे  
यूँ तो तुम
कहलाये धर्मराज
लेकिन एक बात बताओ आज
जब तुम स्वयं को
हार चुके थे
जुए के दाँव पर
फिर क्या अधिकार बचा था
तुम्हारा  द्रौपदी पर  ?


ज़िन्दगी भर मैं हिन्दू बना रहा,
पर ज़रूरी नहीं कि मृत्यु के बाद
मेरा शरीर भी हिन्दू बना रहे.

मेरी मौत के बाद
मेरा शरीर थोड़ा जला देना,
थोड़ा दफना देना,
थोड़ा चील-कौवों को खिला देना.


कभी चंचल चपल हिरनी जैसी
दौड़ती फिरती थी  बागानों में
अब उसे अब देख  मन में  ईर्षा होती
क्यूँ न मैं ऐसी रही अब |
इतनी जीवन्त न हो पाई
बिस्तर पर पड़े पड़े मैंने
लम्बा  समय काटा दिया है
अब घबराहट होने लगती है |


जब भी कोई
पेड़
जलता है
तो केवल
उसका शरीर नहीं झुलसता
साथ झुलसते हैं
संस्कार
जीवन
उम्मीद
और भरोसा।
जले हुए
पेड़ के जिस्म की गंध


उलूक -नामा
मन ही मन
अपने कूदने की लम्बाई भी
भूलते जा रहे थे

बेचारों को
याद भी नहीं रह पा रहा था
कि
नम्बर एक और नम्बर दो करने भी
अभी तक वो लोग
खेतों की ओर ही तो जा रहे थे

कितने कुऎं से बना होता होगा
वो समुद्र
जहाँ से उनके राजा जी यहाँ आ रहे थे
....
इज़ाज़त दें
सादर


13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुतै शानदार..
    आज संगीता दीदी भी है
    कम लिखती है आजकल
    जब भी लिखती है..
    यादगार रचना ही लिखती है
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी अच्छी रचनाएं हैं..। आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर लिंक्स से सजा आज का अंक |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर लिंक्स.मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. शुक्रिया , मुझे शामिल करने के लिए । यशोदा जी याद रखने के लिए आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सभी को शुभकामनाएं ! स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह बहुत सुंदर रचना संकलन

    जवाब देंहटाएं

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