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मंगलवार, 24 नवंबर 2020

1955...राख भी हो जाती है राख तक...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ. सुशील कुमार जोशी जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

धुआँ धुआँ हो कहीं हो फिर भी... डॉ. सुशील कुमार जोशी


बहुत कुछ जलता है

ना धुआँ होता है ना आग दिखती है कहीं

राख भी हो जाती है राख तक

नामों निशा नहीं मिलता है कहीं

फिर भी

ऐसे हड्डियों को ना फँसाइये ....अमृता तन्मय

Amrita Tanmay

आपके दरबार में अनारकलियों का क्या जलवा है

अकबर भी सलीम मियां का चाटते रहते तलवा है

कैसे आप ख्वाबों, ख्यालों की दुनिया बसा लेते हैं

और खट्टे अंगूरों को भी देख- देख कर मजा लेते हैं

बदलो मौलिकता... शांतनु सान्याल

 

शहर है कांच से गढ़ा हुआ इसका -
कोई नगरप्राचीर नहीं क्योंकि
इसे किसी बहिः शत्रु का
डर नहीं, जो ज़ख्म
देखते हो मेरे
अस्तित्व
पर

खाली कोना... पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

 

तेरा ही दर्पण है,

लेकिन!

टूटा है किस कोने, जाना ही कब तूने,

मुख, भूले से, निहार ना लेना!

बिंब, कोई टूटी सी होगी,

डरा जाएगी!

पछतावा सा होगा,

चाहो तो,

पहले,

समेट लेना,

बिखरा सा, टुकड़ा-टुकड़ा!

चली फगुनहट बौरे आम
ग्रामीण भारत के प्रतिनिधि साहित्यकार थे विवेकी राय


 

फिर बैतलवा डाल पर, जुलूस रुका है, मन बोध मास्टर की डायरी, नया गाँवनाम, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ ,जगत तपोवन सो कियो, आम रास्ता नहीं है, जावन अज्ञात की गणित है, चली फगुनाहट, बौरे आम आदि अन्य रचनाओं का प्रणयन भी डॉ. विवेकी राय ने किया है। इसके अलावा डॉ. विवेकी राय ने 5 भोजपुरी ग्रन्थों का सम्पादन भी किया है। सर्वप्रथम इन्होंने अपना लेखन कार्य कविता से शुरू किया। इसीलिए उन्हें आज भीकविजीउपनाम से जाना जाता है।

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे दिसंबर के दूसरे सप्ताह में। 

रवीन्द्र सिंह यादव


6 टिप्‍पणियां:

  1. बेटी की शादी हेतु हार्दिक बधाई
    उम्दा प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  2. महादानी हैं आप
    कन्या दान करने जा रहे हैं
    पाली-पोषी बिटिया विदा करना
    सहज नहीं..
    बढ़िया रचनाएँ..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. आज की पसंदीदा रचनाओं का आस्वादन कराने हेतु हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. संकलन व प्रस्तुति बेमिशाल - - मुझे जगह देने हेतु आभार - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं

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