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शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

1951..दो शादी करने के भी होते हैं फायदे कभी कभी छठ पूजा ने इतना तो समझाया

आज महापर्व
सूर्य षष्ठी 
कोरोना काल का 
यह उत्सव सभी को
सदा-सदा के लिए याद रहेगा
सखि श्वेेता आज अनुुपस्थित है,
 मेरी पसंद की  रचनाओं पर एक नज़र ...



उगते ढलते सूर्य का, छठपूजा त्यौहार।
कोरोना के काल में, माता हरो विकार।।
 
अपने-अपने नीड़ से, निकल पड़े नर-नार।
सरिताओं के तीर पर, उमड़ा है संसार।।





फिर, कुछ पल होंगे, बीते वो कल होंगे,
शायद, एकाकी ना पल होंगे,
रुक ही जाओगे!

या भटकोगे, अन्तर्मन के सूने से वन में, 
यातनाओं के, दारुण प्रांगण में,
कैसे रह पाओगे?




एक रानी मधुमक्खी थी। एक बार वह उड़ती हुई 
तालाब के ऊपर से जा रही थी। 
अचानक वह तालाब के पानी में गिर गई। 
उसके पंख गीले हो गए। अब वह उड़ नही सकती थी। 
उसकी मृत्यु निश्चित थी। 
तालाब के पास पेड़ पर एक कबूतर बैठा हुआ था। 




चाहे कितना भव्य क्यों न हो, सूर्योदय
का समारोह, डूबने से पहले कहीं
न कहीं उसका चेहरा उदास
होता है, सुबह और
शाम के दरमियां
बहुत कुछ
बदल
जाता है,


महान
देवता सूर्य
और उनकी
महान पत्नियाँ

ऊषा
और प्रत्यूषा
को नमन
करते हुऐ

छठ पूजा के
मौके पर
‘उलूक’
ने भी
सम्मान में
हाथ जोड़ कर
अपना सर झुकाया
.....
इति शुभम्
सादर




8 टिप्‍पणियां:

  1. सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका छोटी बहना
    उम्दा प्रस्तुतीकरण हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. छठ पूजा के
    मौके पर
    ‘उलूक’
    ने भी
    सम्मान में
    हाथ जोड़ कर
    अपना सर झुकाया

    जवाब देंहटाएं
  3. सादर नमन..
    शुभकामनाएँ..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  4. छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ और इस बेहतरीन प्रस्तुति हेतु साधुवाद।
    शुभ प्रभात।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर प्रस्तुति।
    छठ पूजा पर मेरी पोस्ट का लिंक देनें के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. आभार यशोदा जी पन्ने को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  7. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं, मुग्ध करता है पांच लिंकों का आनंद, सुन्दर संकलन व प्रस्तुति, मेरी रचना शामिल करने हेतु आभार - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

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