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गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

1609...होश नहीं तुझको तू कौन दिशा से आया...


सादर अभिवादन। 

 भाषा 
भाव 
विचार 
हुए अभिव्यक्ति,
कमरे में 
रखा ग्लोब 
देख रहा व्यक्ति।
-रवीन्द्र 

आइए पढ़ते हैं कुछ चुनिंदा रचनाएँ गुरुवारीय प्रस्तुति में-  


 
आँसू की बूँदें 
तारों के नयनों से 
झरती रहीं

तारों के आँसू
आँचल में सहेजे 
धरती माता


 

सरकारी मजमा

ढोल नगाड़े बजाता हुआ
अखबार की
खबर में
सुबह सुबह रूबरू




Dhruv Singh 

ननुआ का बंदर अपनी बंदरिया को उठाने के लिये झिंझोड़ने लगा। बंदरिया दोबारा नहीं उठी। संभवतः उसे अपने रोज़-रोज़ के झूठ-मूठ के मरने से सच में छुटकारा मिल चुका था। बंदर वहीं अपनी बंदरिया की लाश के पास बैठा-बैठा आसमान की ओर निःशब्द, निर्निमेष देख रहा था मानो वह अपनी बंदरिया की आत्मा को महसूसकर  मन ही मन कह रहा हो-

"चलो अच्छा हुआ, तुझे कम से कम इस नरक से छुटकारा तो मिला!''



 
होश नहीं तुझको

तू कौन दिशा से आया,
शीतल छांव में भूला
समय गमन का आया,
बांध गठरिया चल तू
ये देश वीराना जान ले,
आसक्ति को छोड़ कर
निज स्वरूप पहचान ले



हाँ!
लिखती हूँ
मिटाती हूँ
तुम्ही से कहना है
और तुम्ही से छुपाती हूँ
  
हम-क़दम का नया विषय



आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

13 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर सार्थक सूत्र ! बेहतरीन संकलन ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  3. लाजवाब सूत्रों के बीच जगह देने के लिये आभार रवींद्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार प्रस्तुति छोटी और गहरी भुमिका।
    सार्थक चर्चा अंक विविध विषयों पर दृष्टिपात करता सुंदर संकलन।
    सभी रचनाकारों को बधाई मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार प्रस्तुति, बेहतरीन रचना संकलन

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!रविन्द्र जी ,सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  7. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन..

    जवाब देंहटाएं

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