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मंगलवार, 12 नवंबर 2019

1579..आहट जो तुमसे होकर मुझ तक आती है

सादर अभिवादन
कोई हल्ला नहीं
कोई खून-खराबा भी नही
क्या सच में सब को खूब भाया
पंचमूर्ति का फैसला
पर ये भी बहुत खूब
कि..राम पर या राम मंदिर पर
कोई रचना नहीं अब तक
कोई नहीं कह रहा कि
मंदिर वहीं बनाएँगे
जय श्री राम...चलिए..
चलें रचनाओं की ओर...

सौंदर्य की साधना
काली घटा है घनघोर,
बिजली का भी है शोर,
सियाह-रात ऐसी है कि,
मन व्याकुल है विभोर।

पंख नहीं है उड़ने को,
होश नहीं है चलने को,
वो लथपथ है हुआ बेहाल,
साँस आयी है रुकने को।


क्या हुआ ग़र जुदा हो गए, 
क्या हुआ जो तुम बेवफ़ा हो गएl
मुझे एक पल तो याद करती हो ना, 
की हम खामखा हो गएl

थोड़ी याद ताजा करने,
कभी मिलों तो सहीl


कैसी शगलों में रहते हो डूब जाते हो
नौकाओं को देखो जब भी ऊब जाते हो

पेड़ पुकारे जड़ के लिये , तुम प्रेमी पत्तों के
दर्शन के अभिलाषी  मिलने खूब जाते हो ,


मैंने कभी सोचा नहीं
खुद के बारे में
समय ही नहीं मिला
सब का कार्य करने में |
जिन्दगी हुई बोझ अब तो
चन्द घड़ियाँ रही शेष


तेरे आने की आहट से,
हवाओं में सरगम गूँज उठी।
बालों की लट झूमी लहराई,
हौले से गालों को चूम गई।

पवन झकोरे झूम-झूम के,
संदेशे तेरे सुनाने लगी।
मैं पगली भी झूम-झूम के,
चूनर हवा में लहराने लगी।
.....
विषय नम्बर पिच्चानवे
आहट
उदाहरणः

वह एक आहट थी
या तुम्हारा आगमन
मन में वासंती फूल
खिल-खिलकर
महक उठे थे
और
खो गई थी कहीं
गोकुल की गलियों में ।
कृति आभा पूर्वे

अंतिम तिथि- 16 नवम्बर 2019
शाम 3 बजे तक मेल द्वारा
प्रकाशन तिथि-18 नवम्बर 2019

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सादर




14 टिप्‍पणियां:

  1. आज देव दीपावली ( प्रकाशपर्व) है। यह मन में दीप जलाने का पर्व है। विद्वानों के अनुसार देव का एक पर्यायवाची नेत्र भी है । इस दृष्टि से भी दीप प्रज्ज्वलन के पीछे नेत्र-ज्योति जागृत रखने का भी सन्देश मिलता है । नेत्र को यहाँ प्रतीक रूप में लिया जाए तो ज्ञान, सदाचार, सद्भाव, आदि भी व्यक्ति के जीवन में आत्मबल के दीपक बन के रोशनी करते हैं ।
    अतः सभी रचनाकारों को इस पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शशि भाई , आपकी सारगर्भित टिप्पणी और विस्तृत लेख से , देव दीपावली के बारे में बहुतकुछ पता चला | आपने दीप को ज्ञाननेत्र यानि सद्भावों के अंतर्बोध से जोड़कर बहुत अच्छी बात बताई | निश्चित रूप से सभी पाठकों को बहुत अच्छी जानकारी मिली होगी | आभार |

      हटाएं
  2. शुभ प्रभात..
    पंख नहीं है उड़ने को,
    होश नहीं है चलने को,
    वो लथपथ है हुआ बेहाल,
    साँस आयी है रुकने को।
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
    उम्दा प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्तम रचनाओं का संकलन बहुत सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाएं मनभावन।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर सूत्रों से सजी सराहनीय प्रस्तुति दी।
    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति दी।सभी रचनाएँ बेहतरीन।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  8. सभी रचनाएँ बेहतरीन है। मुझे जो रचनाएँ बहुत अच्छी लगी-
    "जो कहते हो तुम .....नीलांश"

    "कभी सोचा नहीं .....आशा सक्सेना"

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर रचनाएं..... मेरी रचना को स्थान देने हेतु धन्यावादl

    जवाब देंहटाएं
  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  11. आदरणीय दीदी , सच है कि राम मंदिर पर माननीय न्यायमूर्तियों के निर्णय पर, विवेक

    से काम लेते हुए सभी ने इस ऐतहासिक निर्णय के आगे सर झुका कर आपसी सद्भाव की भावना

    को सम्मान दिया है |शायद इसी लिए जो भी रचनाएँ आयीं वो राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत थी |
    श्री राम को सभी ने एक संस्कार के रूप में स्वीकार किया , नाकि धर्म विशेष के चेहरे के रूप में |
    आजके सभी लिंक सुंदर और सार्थक |
    मुझे आज वीर रस के ओजस्वी कवि आदरणीय हरिओम पंवार जी की एक रचना पढने का सौभाग्य मिला

    जिसकी कुछ पंक्तियाँ यहाँ लिखना चाहूंगी ------------------------------

    |राम दवा हैं रोग नहीं हैं सुन लेना

    राम त्याग हैं भोग नहीं हैं सुन लेना
    राम दया हैं क्रोध नहीं हैं जग वालों
    राम सत्य हैं शोध नहीं हैं जग वालों
    राम हुआ है नाम लोकहितकारी का
    रावण से लड़ने वाली खुद्दारी का
    सभी रचनाकारों को शुभकामनायें और आभार

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुंदर प्रस्तुति,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी।

    जवाब देंहटाएं

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