सादर अभिवादन
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आप सभी ने अपने बचपन में चंपक,नंदन,सौरभ-सुमन या अन्य शिक्षाप्रद,प्रेरक और ज्ञानवर्द्धक पुस्तकें पढ़ी होंगी ना।
पढ़ाई की किताबों से अलग इन कहानी की किताबों की कितनी कहानियाँ आज भी प्रेरणा का स्त्रोत होंगी ना।
दया,प्रेम,सहानुभूति भाईचारा,अपनत्व बड़ों का आदर और सम्मान जाने कितनी ही बातें सिखाती ऐसी पुस्तकें अब बच्चों के हाथों में दिखती कहाँ हैं...।
आज के बच्चे पढ़ाई की किताबों की सीमित जानकारी के अलावा और किसी पुस्तक को पढ़ने में शायद ही रुचि रखते हैं। बच्चों के बदले हिंसात्मक,असहिष्णु व्यवहार का सभी विश्लेषण करते हैं किंतु ज़मीनी तौर पर समझने की कोशिश बहुत कम माता-पिता ही करते है।
बदलते दौर में कक्षा में ज्ञान अर्जित करने जा रहे दुधमुंहों को नंबरों और रैंक की रेस में लगाकर माता-पिता अपनी अधूरी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की मशीन बनाने में उन्हें व्यवहारिक शिक्षा देनी है,सहनशीलता,संवेदनशीलता और अन्य विरल होते मानवीय गुणों हे उनके व्यक्तित्व का श्रृंगार करना है यह भी भूल जाते हैं।
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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
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ये वनैले
फूल-तितली,
भ्रमर कैसे खो गये,
यन्त्रवत
होना किसी
संवेदना का हल नहीं है ।
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तुम्हारी आदतें बदल गई कुछ
इस बात मुझे खुश होना चाहिए
मगर मुझे अच्छा नही लग रहा है
कुछ आदतें कभी नही बदलनी चाहिए
इस बात का अहसास अब हुआ है मुझे
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फटे-पुराने रीति-रिवाजों को
न ओढ़ लेना
गली मुहल्ले का कचरा
घर में न जोड़ लेना
देवी बनकर मत रहना
तुम नारी बन रहना
जिन्दगी की ज़ंग में ज़ख्मों का ज़खीरा साथ चलता रहा
पतझर में मधुमास की उम्मीदों का कारवां बचा पास है!
हजारों तूफ़ान आए हार मानी नहीं जिन्दगी ने......,
विश्वासों उम्मीदों की अटल डोर का सहारा बचा पास है!
अमर का चेहरा मायूस हो गया।उसकी आँखों में सपना और बच्चों का उसके इंतज़ार करते उदास चेहरे घूम गए।पर फर्ज पुकार रहा था।
गाँव में आतंकवादी घुस आए थे।अमर सब भूलकर अपनी ड्यूटी पर लग गया।आतंकी मुठभेड़ में अमर की टीम ने आतंकवादियों को मार गिराया।पर दो जवान सहित कैप्टन अमर शहीद हो जाते हैं।
अमर के स्वागत में जुटी सपना को उसकी दुनिया लुटने की खबर भी नहीं थी। सुबह-सुबह अचानक अपने सास-ससुर और देवर को देखकर सपना खुशी से चहक उठी। अरे आप लोग! अच्छा हुआ आप सभी आ गए, यह आज आने वाले हैं, आपको देखकर बहुत खुश होंगे।
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आप सभी की प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ाती है।
कल का अंक पढ़ना न भूलें
कल आ रही है विभा दी
एक विशेष विषय के साथ।
#श्वेता
बेहतरीन अंक..
जवाब देंहटाएंसाधुवाद...
सादर..
वाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत प्रस्तुति । भूमिका में उल्लेखित सभी पत्रिकाएं हमारे बचपन में खूब पढी हैं ,धन्यवाद एक बार फिर बचपन की सैर करवाने के लिए । सभी चयनित रचनाएँ लाजवाब ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंसुस्वादु पंचामृत
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक भूमिका। सारा दोष पुरानी पीढ़ी का है जो रचनात्मक संस्कारों को न सहेज सकी और न ही संचरित कर सकी। बात-बात पर स्वयं असहिष्णु हो उठने वाली जमात भला अपनी संततियों को सांस्कारिक भ्रम के भँवर में भटकाने के सिवाय और क्या कर सकती है। इसलिए भूमिका में उकेरी गई चिंता गहन चिंतन और कार्यान्वयन की अपेक्षा रखता है।
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छूटकी
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन
सभी आदरणीय जनों को सादर प्रणाम 🙏।
जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी जी सभी चयनित रचनाओं के संग आपकी प्रस्तुति लाजावाब रही 👌।
सभी को ढेरों शुभकामनाएँ।
आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ दीदी जी। आज माता-पिता की महत्व्कांक्षा और भारी बस्तों का बोझ ढोते बच्चों का बचपना,उनकी मासूमियत,निश्छलता कहीं खोती जा रही है। जहाँ एक ओर अभिभावक बच्चों के पालन,पोषण और उचित शिक्षा दिलाने को अपने कर्तव्य से अधिक अपने पड़ोसियों और रिश्तेदारों के संग होती प्रतिस्पर्धा समझ बैठे हैं तो वही ये डिजिटल युग भी बचपन का गला घोटने में लगा है।जिन हाथों में कभी चंपक,नंदन जैसी किताबें होती थी आज उन हाथों में वीडियो गेम्स और मोबाइल हैं जो ये साफ़ बताता है कि हमारा भविष्य किस अंधकार की ओर अग्रसर है।
एक तो वैसे ही बच्चों के साथ रेस में दौड़ते अभिभावकों और स्कूलों के पास इतनी फ़ुर्सत नही कि अपने बच्चों के मन में उचित मूल्यों और संस्कारों को रोपित कर सकें ऊपर से जाने कहाँ -कहाँ से समाज में फैली हर दुर्भावना बच्चों के कोमल मन में स्थान लेकर उनके भोलेपन पर प्रहार करते हुए मनुजता का हनन कर रही है। यदि आलम यही रहा तो हम ये गारंटी के साथ कह सकते हैं कि जितनी ईर्षा,हिंसा और अपराध हम आज देख रहे हैं उससे चार गुना हम अपने आने वाले कल में देखने का दुर्भाग्य प्राप्त कर सकते हैं।
नही हम ये बिल्कुल नही कहते कि बच्चे इस रेस में हिस्सा ना लें। बिल्कुल लें,क्योंकि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में कुछ अनुचित नही बल्कि वो तो उत्साह ही बढ़ाती है। पर जो बच्चों को बचपने से दूर कर दे वो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा कैसे हुई?
बच्चों की मस्ती,शरारत,गलियों की धमाचौकड़ी,उनकी निश्छलता ये सब कुछ आज भी बाल साहित्य ने अपने पन्नों में सहेज रखा है। आज भी बहुत सी काव्य संग्रह,कहानी संग्रह और बाल साहित्य को समृद्ध करती अन्य पुस्तकें स्वंय को प्रकृति से मिलती सीख,दया,प्रेम,करुणा,देश भक्ति आदि रसो और भावों से सुसज्जित कर बचपन बचाने का बीड़ा उठाए अपने बाल पाठकों के इंतज़ार में बाजार में पड़ी धूल खा रही हैं। पर मार्वेल्स का हर अपडेट रखने वाले बच्चों को इसकी कोई खबर ही नही। जिस तरह बच्चे बचपन से दूर हो रहे उसी तरह बाल साहित्य से भी।
अब समस्या का विस्तार तो खूब हो गया पर समाधान कहाँ है? तो समाधान भी स्वंय कलम के सिपाही ही है जो हर आंदोलन को उसके अंजाम तक पहुँचाने में हर क्रांति में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते आए हैं। बच्चों के बीच बाल साहित्य को फिर से लोकप्रिय बना उसमें निहित सीख,प्रेम,आदर आदि भावों से बच्चों को जोड़ कर उनके बचपने को बचाने का प्रयास कर सकते हैं।और ये कहना गलत नही होगा कि कलम के सिपाहियों ने अपने प्रयास आरंभ भी कर दिए हैं। तो बस अब बाल साहित्य का एक ऐसा मेला लगाना है हम सबको जो बच्चे बच्चे को यहाँ खींच लाए और उनके अभिभावकों को भी इस मेले में लाकर उन्हें भी अपने बच्चों के प्रति और जागरुक करें।
ज्ञान,अनुभव,उम्र सब में आप सब छोटे हैं अतः कहते कहते कुछ अधिक या अनुचित कह गए हो तो क्षमा करिएगा और मार्गदर्शन भी।
हटाएंसादर शुभ रात्रि 🙏
सहमत
हटाएंप्रिय आँचल आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया भूमिका को विस्तार दे रही है। आप जैसे साहित्यिक सुधिजनों की जागरूकता,प्रयास और सहयोग अवश्य सार्थक होगी आशान्वित है हम।
हटाएंबेहद शुक्रिया।सस्नेह।
हार्दिक आभार आदरणीय सर 🙏
हटाएंबेहद शुक्रिया आदरणीया दीदी जी 🙏
सादर प्रणाम।शुभ रात्रि।
सु न्दर अंक
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय सर 🙏
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया आदरणीया दीदी जी 🙏
सादर प्रणाम।शुभ रात्रि।
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